Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 281
________________ २४४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस प्रकार सरोवरकी परिक्रमा देते हुए जिस मार्गसे आये थे, उसीसे वापस लौटते हैं । यहाँसे गया लौटना चाहिए। सम्मेदशिखर-गया जंकशनसे ट्रेन द्वारा चलकर पारसनाथ स्टेशन उतरना चाहिए। पारसनाथ स्टेशन दिल्ली-हबड़ा मेन रेलमार्गपर गया-हजारीबाग और गोमोके बीच अवस्थित है। यहाँ कुछ गाड़ियोंको छोड़कर प्रायः सभी गाड़ियाँ रुकती हैं। दिल्लीसे पारसनाथ स्टेशन ११३५ कि. मी. है और गया से १५२ कि. मी. है। पारसनाथ स्टेशनसे ईसरीको दिगम्बर जैन तेरहपन्थी तथा बीसपन्थी धर्मशालाएँ केवल दो फलांग दूर हैं। पहले तेरहपन्थी दिगम्बर जैन धर्मशाला मिलती है। इसका प्रवेशद्वार सड़क किनारेपर ही है। बीसपन्थी धर्मशालाका प्रवेशद्वार तेरहपन्थी धर्मशालाके बराबरवाली गली में है। स्टेशनसे कुली आदिका रेट निश्चित है। धर्मशालाके मैनेजरसे पूछ लेना चाहिए। ईसरीमें चार जैन मन्दिर हैं-(१) तेरहपन्थी दिगम्बर जैन मन्दिर, (२) बीसपन्थी दिगम्बर जैन मन्दिर, ( ३ ) दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मन्दिर उदासीनाश्रम, ( यहाँ पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णीको समाधि भी बनी हुई है ) ( ४ ) महावीर दिगम्बर जैन मन्दिर मुमुक्षु महिलाश्रम। ईसरीसे मधुवन २२ कि. मी. है। ईसरीसे तेरहपन्थी कोठीकी बस मधुवनके लिए जाती है। टैक्सियाँ भी मिलती हैं। मधुवन सम्मेदशिखरकी तलहटीमें स्थित है। यहाँ दिगम्बर जैन समाजकी दो कोठियाँ बनी हुई हैं-दिगम्बर जैन तेरहपन्थी कोठी और दिगम्बर जैन बीसपन्थी कोठी। यहाँ और ईसरीको तेरहपन्थी कोठीको व्यवस्था बंगाल-बिहार-उड़ीसा दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, २ वैशाख लेन, कलकत्ता-७, करती है। ईसरी और यहाँकी बीसपन्थी कोठियोंकी व्यवस्था भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, हीराबाग, बम्बईके अन्तर्गत है। तेरहपन्थी कोठीमें ५ धर्मशालाएँ, उनमें २०५ कमरे, ३ मन्दिर, उनमें कुल १२ वेदियाँ बनी हुई हैं। इसका नन्दीश्वर मन्दिर विशेषतः दर्शनीय है। बीसपन्थी कोठोमें ३ धर्मशालाएँ, उनमें कुल १६६ कमरे, दो मन्दिर, उनमें कुल चौदह वेदियाँ बनी हुई हैं। इस कोठीके सामने बाहुबली मन्दिर बना हुआ है, जिसमें चौबीस तीर्थंकरोंकी चौबीस देवकुलिकाएँ अथवा मन्दरियाँ बनी हुई हैं। इस मन्दिरके बराबरमें अत्यन्त भव्य समवसरण मन्दिर बन रहा है। ___ यहाँकी धर्मशालाओंमें नल, कुआँ, बिजली, गर्म जल आदिकी सुन्दर व्यवस्था है । पहाड़पर जानेके लिए प्रातः तीन बजे शौच, स्नान आदिसे निवृत्त हो लेना चाहिए। साथमें लाठी और लालटेन ले लेनी चाहिए। आवश्यकता हो तो भील और डोली ले लेनी चाहिए। दोनों कोठियोंमें इस सबकी व्यवस्था है। वस्त्र हलके और कम धारण करने चाहिये। धूप निकलनेपर वस्त्र असह्य लगने लगते हैं। कोठियोंसे चलकर सवा दो मीलपर गन्धर्व नाला मिलता है। वहीं श्वेताम्बर और दिगम्बर कोठियाँ बनी हुई हैं । यहाँ यात्रासे लौटनेपर नाश्ता मिलता है। अगर मूत्रादिकी बाधा हो तो यहाँ निवृत्त हो लेना चाहिए। इससे आगे मल-मूत्रादि नहीं करते। यहाँसे पौने दो मील आगे जानेपर सोता नाला मिलता है। यहाँ अपनी सामग्री धो लेनी चाहिए। यहाँसे दो मीलकी कठिन चढ़ाई पड़ती है। सबसे प्रथम गौतम स्वामीको टोंक मिलती है। यहाँ विश्रामके लिए एक कमरा बना हुआ है। टोंकसे बायें हाथकी ओर मुड़कर पूर्व दिशाको पन्द्रह टोंकोंकी वन्दना करनी चाहिये । इन टोंकों ( कूटों ) के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं

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