Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 224
________________ बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ १८७ कलिंगवासियोंकी भावनाकी तुष्टि को उनके प्रिय सम्राट् खारबेलने । नन्दराजा महापद्मनन्दके पौने तीन सौ वर्ष पश्चात् खारबेलने अपने शासनके १२वें वर्षमें उत्तरापथ ( जिसकी राजधानी तक्षशिला थी ) के राजाओंको त्रस्त किया। फिर मागधोंको भयभीत करते हुए अपने हाथियोंको सुगांगेय ( पाटलिपुत्रका राजमहल ) तक पहुँचाया। मागध राजा वहसतिमित्र ( बृहस्पतिमित्र)को पैरोंमें गिरवाया। जब खारबेल लौटा तो वह राजा नन्द द्वारा लायी हुई 'कलिंग जिनमूर्ति'को भी अपने साथ कलिंग लेता आया । कलिंगवासियोंने अपने आराध्य देवताके पुनः कलिंगमें पधारनेपर जो राष्ट्रीय स्तरपर स्वागत किया और राष्ट्रीय उत्सव मनाया, वह जैनधर्मके प्रति कलिंगवासियोंकी अगाध श्रद्धाका प्रतीक था। खारबेलने अपने राज्यमें, विशेषतः कुमारी पर्वतपर जहाँ भगवान् महावीरने धर्मोपदेश किया था, जिन-मन्दिर बनवाये और अर्हत् निषधिकाका जीर्णोद्धार किया। राज्य-प्राप्तिके तेरहवें वर्षमें उन्होंने श्रावकके व्रत लिये और अपना शेष जीवन धर्माराधनमें व्यतीत किया । हाथीगुम्फा शिलालेखसे यह भी प्रकट होता है कि खारबेल ही नहीं, उनके परिवारके सभी लोग जैनधर्मावलम्बी थे। खारबेलकी मृत्युके सम्बन्धमें इतिहास अथवा हाथीगुम्फा लेखसे हमें कोई सूचना नहीं मिलती। किन्तु उनके जोवनके अन्तिम वर्षोंकी उनकी धर्मसाधनाको देखते हुए लगता है कि उन्होंने खण्डगिरि-उदयगिरिकी गुफाओंमें ही सल्लेखना द्वारा समाधिमरण ले लिया। . खारबेलकी मृत्युके पश्चात् कलिंगमें जैनधर्मकी स्थिति क्या रही, 'कलिंग-जिन' प्रतिमाका क्या हुआ तथा उनका उत्तराधिकारी कौन हुआ, इन महत्त्वपूर्ण प्रश्नोंपर प्रायः इतिहास मौन है। ___डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल आदि कुछ इतिहासकारोंका मत है कि शकोंके आक्रमणके पहले उज्जयिनमें जिस राजा गर्दभिल्लके चौदह वर्षके राज्यका जैन अनुश्रुति और पुराणोंमें उल्लेख है, वह खारबेलका कोई वंशज था। हिन्दू पुराणोंके अनुसार सात गर्दभिल्ल राजाओंने ७२ वर्ष तक राज्य किया था। ___ सारांशतः भगवान् पाश्वनाथसे अर्थात् ईसा पूर्व आठवीं शताब्दीसे खारबेलके समय तक अर्थात् ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी तक (सात सौ वर्षों तक) कलिंगमें जैन धर्मका प्रभाव अक्षुण्ण रहा । हाथी गुम्फाके शिलालेखानुसार खारबेल और उनके परिवारने अपने राज्यके तेरहवें वर्ष में कुमारी पर्वतपर जैन साधुओंके ध्यानादिके लिए गुफाओंका निर्माण कराया और वहाँ सभी दिशाओंके विद्वानों और तपस्वी साधुओंका सम्मेलन किया। खारबेलके शासनके बहत पहलेसे ही जैनधर्म कलिंगका राष्ट्र धर्म था। राज-परिवारकी श्रद्धा और पीठबलने इस धर्मको कलिंगके जन-जनका धर्म बना दिया। __"मामला पांजि" ग्रन्थके अनुसार दिल्लीके भोजक पातिशा (बादशाह) के सेनापति रक्तबाहुने आक्रमण करके उड़ीसापर अधिकार कर लिया। उसके बाद उसके वंशके अठारह राजाओंने उड़ीसापर शासन किया। उक्त ग्रन्थ इन राजाओंको मुगल बतलाता है। इन मुगलोंने सन् २२८ से सन् ४७४ ई. तक कुल २४६ वर्ष राज्य किया। इन राजाओंके राज्य-कालकी हजारों मुद्राएं इस प्रान्तके विभिन्न स्थानोंसे भू-उत्खननमें निकली हैं । इन मुद्राओंको देखकर कुछ विद्वानोने उपर्युक्त राजाओंको कुषाण माना था। किन्तु वस्तुतः कुषाण कभी काशीसे आगे नहीं बढ़ पाये। अतः कलिंगमें उनका शासन कैसे सम्भव हो सकता था। अब डॉ. नवीन कुमार साहु तथा अन्य कई इतिहासकारोंने यह स्थापना की है कि

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