Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Author(s): Balbhadra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 272
________________ परिशिष्ट - २ २३५ लगता कि जहाँ-जहाँ महावीर गये हों, वहाँ-वहाँ लोगोंने मन्दिर बनवा दिये हों तथा उनका उपदेश सुनकर उनके विरोधी भूमिज उनके अनुयायी हो गये हों । अथवा ऐसा हो कि वे वहाँ गये जहाँ जैन पहले से ही ( शिखरजी के आसपास ) बसे हुए थे।" कर्नल डैल्टनने बंगाल ऐशियाटिक सोसाइटी जर्नल अंक ३५ सन् १८६८ में सराकों के अहिंसा प्रेम और उनकी शान्तिप्रियता के सम्बन्ध में एक लेख लिखा था । जिसका आशय इस प्रकार है "मानभूम में प्राचीन कलाके अनेक चिह्न प्राप्त होते हैं जो सर्वाधिक प्राचीन हैं और जैसा कि यहाँ के लोग कहते हैं, ये वास्तवमें उन लोगोंके हैं, जिस जाति के लोगों को सिराव, सिराफ या सरावक कहते हैं । जो शायद भारत के इस भाग में सबसे प्राचीन निवासी थे । सिंहभूम के पूर्वीय भागों में भी सराकों की प्राचीन बस्ती प्रसिद्ध है । ये नदियोंके तटोंपर आकर बसे और हम उनके खण्डित मन्दिर दामोदर, कसाई तथा अन्य नदियोंके तटोंपर पाते हैं। ये लोग जीव - हिंसासे घृणा करते हैं और ये सूर्योदयसे पहले भोजन नहीं करते । ये पार्श्वनाथकी पूजा करते हैं । लेखक झापरामें कुछ गाँववालोंसे मिला था। वे बहुत ही प्रतिष्ठित और बुद्धिमान् पुरुष मालूम होते थे । वे अपने आपको श्रावक कहते थे तथा वे इस बातका अभिमान करते थे कि इस ब्रिटिश राज्यमें उनमें से किसीको अबतक कोई फौजदारी अपराधका दण्ड नहीं मिला है ।" इधर के सराक यह बात विश्वासके साथ कहते हैं कि वे पहले अग्रवाल थे, पार्श्वनाथकी पूजा करते थे और सरयू नदी के तटवर्ती देशमें रहते । सरयू गाजीपुर के पास जहाँ गंगा मिलती है, वहाँ वे व्यापार और सर्राफेका धन्धा करते थे । विशेष उल्लेखनीय यह है कि इस देश के इस भागके सराकों की सेवा ब्राह्मण करते हैं जो कहीं-कहीं पुजारीका काम करनेसे हलके माने जाते हैं । मानभूम जिले में अनेक स्थान ऐसे हैं, जहाँ सराक मिलते हैं । अथवा प्राचीन जैन मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं । बलरामपुर में बैजनाथके मन्दिर जैसा एक मन्दिर है । यह पुराने जैन मन्दिरको तोड़कर बनाया गया है । इसमें अभी तक नग्न मूर्तियाँ अंकित हैं । बोरममें तीन मन्दिर जीर्ण दशा में खड़े हैं । इनमें जो ईंटें प्रयुक्त हुई हैं, वे बारह इंचसे लेकर अठारह इंच तक लम्बी और दो इंच मोटी हैं । इन मन्दिरोंकी सब जैन- मूर्तियाँ यहाँ से एक मील दूरपर स्थित एक हिन्दू मन्दिरमें रख दी गयी हैं । पुरुलियासे उत्तर-पूर्व में चार मील दूर छर्रा गाँव है । यहाँ गाँवमें जैन मूर्तियां पड़ी हुई हैं। कुछ मन्दिरोंके अवशेष पड़े हुए हैं। आसपास के सरोवर सराकों द्वारा बनाये हुए हैं । स्वर्णरेखा नदी के किनारे डलमा या दयापुर डलमी नामक नगर में जैन मन्दिरोंके अवशेष मिलते हैं । डालमीसे १० मील उत्तर-पश्चिममें देवली गाँवमें करण वृक्षके नीचे मन्दिरोंके चिह्न विद्यमान हैं। एक मूर्ति अरहनाथ भगवान्‌की तीन फुटको है । सिरके द नों ओर छह-छह तीर्थंकर प्रतिमाएँ बनी हुई हैं । सम्भवतः यहाँ पाँच मन्दिर थे, जिनमें दो अभी मौजूद हैं । ईसागढ़ के पास देवलट में जैन चिह्न मिलते हैं । कतरासगढ़ के पास दामोदर नदीके दोनों तटोंपर चेचगाँवगढ़ और वैलेंज में प्राचीन भग्न मन्दिर हैं । यहाँ दोनों तटोंपर लगभग बीस भग्न जैन मन्दिर मौजूद हैं | पराभूम परगने के एक गाँव पवनपुरमें बहुत से मन्दिरोंके चिह्न मिलते हैं । 1 पाकवीर पुरलियासे ३६ मील तथा बड़ा बाजारके उत्तर-पूर्व में बीस मील और पोंचाके पूर्व में एक मीलपर एक छोटा-सा गाँव है, जिसे पाकवीर कहते हैं । यहाँ बहुत से प्राचीन मन्दिर और कला -

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