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भारत के दिगम्बर जैत तीर्थं
अग्निभूति - माता-पिता-गोत्र और स्थान पूर्ववत् । इनके भी ५०० शिष्य थे। इनके मनमें शंका थी कि कर्म हैं या नहीं ? वे फल देते हैं या नहीं । भगवान् महावीरके पास जानेपर इनकी शंकाका भी समाधान हो गया था और वे भगवान्के द्वितीय गणधर बन गये थे। उनकी कुल आयु ७४ वर्षकी थी, जिसमें ४६ वर्षं गृहस्थ दशाके, १२ वर्षं छद्मस्थ दशाके और १६ वर्षं केवली अवस्थाके थे ।
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वायुभूति - माता-पिता-गोत्र और स्थान इन्द्रभूतिके समान । इनके ५०० शिष्य थे । इन्हें यह सन्देह था कि शरीर और जीव एक ही हैं, भिन्न-भिन्न नहीं हैं। जब ये भगवान् महावीरके पास विपुलाचलपर गये, तो भगवान् ने इसके मनका यह सन्देह दूर कर दिया। एक-एक करके ये तीनों भाई भगवान्को हरानेके लिए बड़े अभिमानमें भरकर गये थे, किन्तु उनका अभिमान समवसरण के बाहर मानस्तम्भको देखकर ही चूर्ण हो गया । भगवान्के चरणों में पहुँचकर तो इन्हें एक नवीन प्रकाश मिला और वे भगवान्के गणधर - शिष्य बन गये । इनकी आयु ७० वर्ष की थी, जिसमें ४२ वर्षं गृहस्थ अवस्था में १० वर्ष छद्मस्थ दशामें और १८ वर्ष केवली रहकर
व्यतीत हुए ।
व्यक्त - माता वारुणी, पिता धनमित्र, कोल्लाग सन्निवेश, भारद्वाज गोत्र । इनके भी ५०० शिष्य थे। इन्हें शंका थी कि पृथ्वी आदि भूत हैं या नहीं। महावीर प्रभुने इनकी शंका दूर की और फिर ये उनके शिष्य बनकर गणधर बन गये। इनकी कुल आयु ८० वर्ष की थी । ५० वर्ष गृहस्थावस्थामें, १२ वर्षं छद्मस्थ दशामें और १८ वर्ष केवली दशामें रहे ।
सुधर्म - माताका नाम भद्रिला, पिता धर्मिल, कोल्लाग सन्निवेश निवासी, अग्नि वैश्यायन गोत्र । इनके ५०० शिष्य थे। इनके मनमें यह मिथ्या विश्वास जमा हुआ था कि जो इस भवमें जैसा है, दूसरे भव में वह वैसा ही होगा। इस मिथ्या विश्वाससे उन्हें मुक्ति तब मिल सकी, जब वे प्रभु महावीर के पास विनीत भावसे गये । फिर ये उनके गणधर बन गये । इनकी आयु १०० वर्षकी थी, जिसमें ५० वर्षं गृहस्थी में रहे । ४२ वर्षं छद्मस्थावस्थामें बिताये और ८ वर्ष अन्त अवस्था रही । जिस दिन गौतम इन्द्रभूतिको निर्वाण मिला, इन्हें केवलज्ञान प्रकट हुआ ।
मण्डिक पुत्र - माता विजयादेवी, पिता धनदेव, मौर्यं सन्निवेश, वशिष्ठ गोत्र । इन्हें शंका कि बन्ध-मोक्ष हैं या नहीं। ये महावीर तीर्थंकरके निकट गये और शंका दूर हुई। इनकी कुल आयु ८३ वर्षको थी, जिसमें ५३ वर्षं गृहस्थ अवस्थामें रहे, १४ वर्ष छद्मस्थ रहे और १६ वर्ष जिनेश्वर पर्यायमें रहे। इनके ४९० शिष्य थे ।
मौर्यपुत्र - माता विजयादेवी, पिता मौर्य, मौर्यं सन्निवेश, काश्यप गोत्र । इन्हें देवोंके अस्तित्वमें सन्देह था, जो महावीर प्रभुने दूर किया । इनकी आयु ९५ वर्ष थी । ६५ गृहस्थी में बीते । १४ वर्ष तक छद्मस्थ रहे और १६ वर्ष केवली रहे। इनके पास ४५० छात्र पढ़ते थे ।
अकम्पित-माताका नाम जयन्ती, पिताका नाम देव, मिथिलाके रहनेवाले, गौतम गोत्र । इनके ३०० शिष्य थे । नारक हैं या नहीं, इनके मनमें यह शंका थी । इनकी आयु ७८ वर्ष की थी । ४८ वर्षं गृहस्थ रहे । ९ वर्ष छद्मस्थ दशामें व्यतीत हुए और २१ वर्ष केवली रहे ।
अचल भ्राता - नन्दा माता, वसु पिता, कोशलके रहनेवाले, हारीतस गोत्र । ३०० शिष्य थे । पुण्यके बारेमें इन्हें संशय था । महावीर भगवान् ने इनका संशय दूर करके इन्हें अपना गणधर या । इनकी आयु ७२ वर्षकी थी । ४६ वर्ष गृहस्थ, १२ वर्ष छद्मस्थ और १४ वर्ष केवली रहे ।