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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ राजगृहनरेश उपश्रेणिक वन-भ्रमणके लिए गये हुए थे। वनमें उन्हें एक रूपवती कन्या मिली। यह कन्या उस वनके भीलराजकी पुत्री थी। उपश्रेणिक उस कन्यापर मोहित हो गये। उन्होंने भीलराजसे उसकी याचना की, जिसका नाम तिलकवती था। भीलने कहा-विवाह करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है किन्तु शर्त यह है कि मेरी पुत्रीसे जो पुत्र हो, वह राजगद्दीका मालिक होगा। उपश्रेणिकने यह शर्त स्वीकार कर लो और तिलकवतीसे विवाह कर उसे ले आये। उससे एक पुत्र हुआ, जिसका नाम चिलातपुत्र रखा गया।
उपश्रेणिककी पहली रानीसे भी एक पुत्र था, जिसका नाम श्रेणिक था। वह योग्य, वीर और साहसी था। राजा जानता था कि श्रेणिकका ही गद्दीपर अधिकार है, वह योग्य है और प्रजा भी उसे चाहती है। किन्तु अपना वचन रखने के लिए राजाने श्रेणिकको राज्यसे अकारण निकाल दिया और चिलातपुत्रको राज्य सौंपकर स्वयं मुनि-दीक्षा धारण कर ली।
राजा बनते ही चिलातपुत्रने प्रजापर घोर अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया। अनेक प्रजाजन शिकायत लेकर श्रेणिकके पास पहुँचे। श्रेणिकने प्रजाको खातिर मगधपर आक्रमण करके राज्यपर अधिकार कर लिया। चिलातपुत्र भागकर जंगलोंमें जा छिपा। किन्तु जंगलमें रहकर भी चिलातपुत्र जनतापर अत्याचार करता रहा। एक बार छिपकर वह राजगृहमें पहुंचा और स्नान करती हुई सुभद्रा नामक एक कुमारी कन्याको बलात् उठा लाया। जब इसकी शिकायत श्रेणिकके पास पहुंची तो उसने कुछ सैनिकोंको लेकर तत्काल पीछा किया। चिलातपुत्रने भयभीत होकर उस कन्याको जानसे मार दिया और वहाँसे भागा।
भागते-भागते वह वैभारगिरिपर पहुंचा। वहाँ मुनि-संघको देखकर संघके आचार्य मुनिदत्तके चरणोंमें जा पड़ा और रक्षाकी प्रार्थना करने लगा। मुनिराजने उसे अपनी शरणमें ले लिया और उपदेश दिया-"वत्स! तेरी आयु सिर्फ आठ दिनकी शेष है। जिनदीक्षा लेकर तुम्हें अब आत्म-कल्याण करना चाहिए।"
मुनिराजको यह बात सुनकर चिलातपुत्रने मुनि-दीक्षा ले ली और प्रायोपगमन संन्यास (मरण) ले लिया। जब श्रेणिक उसका पीछा करता हुआ वैभार पर्वतपर पहुँचा और उसे मुनिअवस्थामें देखा तो उसने उन्हें नमस्कार किया।
जिस सुभद्राको चिलातपुत्रने मार डाला था, वह मरकर व्यन्तरी हुई। उसने मुनि चिलातपुत्रपर बड़ा उपसर्ग किया। किन्तु वे विचलित नहीं हुए और मरकर सर्वार्थसिद्धि विमानमें अहमिन्द्र हुए।
राजा श्रेणिक प्रारम्भमें जैनधर्मके अनुयायी नहीं थे, वे महात्मा बुद्धके भक्त थे। किन्तु महारानी चेलना प्रारम्भसे जैनधर्मकी उपासिका थी। वे वैशाली गणतन्त्रके अधिपति राजा चेटककी पुत्री थीं और उनकी बड़ी बहन त्रिशलादेवी अथवा प्रियकारिणी कुण्डग्रामके अधिपति राजा सिद्धार्थके साथ विवाही थीं। .
. राजा श्रेणिककी धारणा थी कि चेलनाने उनके गुरुओंके साथ अभद्र व्यवहार किया है। इसलिए उसका सारा क्रोध चेलनाके गुरुओं अर्थात् जैन मुनियोंके प्रति था । एक दिन राजा शिकार खेलने गया। उसने वनमें यशोधर नामक एक जैन मुनिको देखा। राजाने क्रोधमें भरकर उनके ऊपर शिकारी कुत्तोंको छोड़ा। किन्तु तपके प्रभावसे कुत्ते मुनिके चरण चाटने लगे। चिढ़कर राजाने उन्हें बाणोंसे छेदना चाहा, किन्तु वे बाण मुनिके चरणोंमें पुष्प बनकर बिखर गये। तब खीजकर श्रेणिक मरे पड़े हुए एक साँपको मुनिके गलेमें डालकर लौट आया। मुनि-हिंसाके इन