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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सर्वत्र कुण्डपुर ( अथवा कुण्डग्राम, क्षत्रियकुण्ड ) ही मिलता है। किन्तु कुछ प्राचीन शास्त्रोंमें जन्मनगरीका नाम 'कुण्डलपुर' दिया है। यथा
"सिद्धत्थराय प्रियकारिणी हिं णयरम्म कुण्डले वीरो। उत्तर फग्गुणि रिक्खे चित्तसिया तेरसीए उप्पण्णो ॥ धम्मार कुंथू कुरुवंसजादा णाहोग्गवंसेसु वि वीरपासा। सो सुव्वदो जादववंसजम्मा णेमीउ इक्खाकुकुलम्मि सेसा ॥"
-तिलोयपण्णत्ति ४५४९-५५० इसी प्रकार
"आसाढ जोण्ण पक्ख छट्टीए कुण्डलपुर णगराहिव णाहवंश सिद्धत्थ णरिन्दस्स तिसिलादेवीए गब्भमागंतेणु तत्थ अट्ठादिवसाहिय णवमासे अच्छिम चइत्त सुक्ख पक्ख तेरसीए उत्तरा फग्गणी णक्खत्ते गब्भादो णिक्खंतो॥"
-षट्खण्डागम, चतुर्थ वेदनाखण्ड ४।१।४४, पृ. १२१ इस प्रकार प्राचीन आर्षग्रन्थोंमें कुण्डलपुरका उल्लेख नालन्दाके निकटवर्ती कुण्डलपुरको महावीरकी जन्म-भूमि माननेमें एक प्रमाण बन गया। किन्तु हमारा विश्वास है, आचार्य यतिवृषभ और आचार्य वीरसेनका कुण्डलपुर लिखनेका आशय उसी कुण्डपुरसे है, जो वस्तुतः महावीरकी जन्म-भूमि है। भगवान् महावीरकी दीक्षा और विहार
महावीर जब तीस वर्षके हुए तो वे आत्म-कल्याण और लोक-कल्याणको भावनासे राजपाट, घर-द्वार, परिजन-पुरजन सबकी ममताका त्याग कर चल दिये। वे चन्द्रप्रभा नामकी पालकीमें बैठे। उस पालकीको सबसे पहले भूमिगोचरी राजाओंने, फिर विद्याधर राजाओंने और फिर इन्द्रोंने उठाया था। षण्ड नामक वनमें पहुँचकर वे पालकीसे उतर पड़े और एक शिलापर उत्तरकी ओर मुँह करके वेलाका नियम लेकर विराजमान हो गये। मगसिर वदी दशमीके दिन, जबकि निर्मल चन्द्रमा हस्त और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रके मध्यमें था, तब सन्ध्याके समय भगवान् महावीरने संयम धारण किया। इस सम्बन्धमें आचार्य गुणभद्रने 'उत्तरपुराण' में लिखा है
"नाथः षण्डवनं प्राप्य स्वयानादवरुह्य सः। श्रेष्ठः षष्ठोपवासेन स्वप्रभापटलावृते ||७४।३०२ निविश्योदङ्मुखो वीरो रुन्द्ररत्नशिलातले। दशम्यां मार्गशीर्षस्य कृष्णायां शशिनि श्रिते ॥७४।३०३ हस्तोत्तरर्खयोर्मध्यं भागं चापास्तलक्ष्मणि ।
दिवसावसितौ धीरः संयमाभिमुखोऽभवत् ॥७४।३०४ पारणाके दिन महावीर कूलग्राम नगरमें पहुंचे और वहाँके राजा कूलके यहाँ आहार लिया।
इसके पश्चात् महावीरका विहार किन-किन गांवों और नगरोंमें हुआ, इसके सम्बन्धमें दिगम्बर साहित्यमें विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं होता। हाँ, उन देशोंके नामोंका उल्लेख अवश्य मिलता है। श्वेताम्बर आगमोंमें यह वर्णन विस्तार-सहित मिलता है। इनके अनुसार भगवान् महावीर दीक्षाके लिए ज्ञातखण्ड नामक उपवनमें पहुँचे। वहाँ दीक्षा लेकर वे कूर्मारग्राम पहुँचे। वहाँसे कोल्लाग सन्निवेश, मोराक सन्निवेश, अस्थिकग्राम, वाचाला, सेयंविया, सुरभिपुर, थूणाक