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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
४३ सन्निवेश, नालन्दा, राजगृह, ब्राह्मणगाँव, चम्पापुरी, कालाय सन्निवेश, पत्तकालय, कुमारा सन्निवेश, चोराक सन्निवेश, पृष्ठचम्पा, कयंगला, श्रावस्ती, नंगलागाँव, आवत्ता, कलंवुका । वहाँसे अनार्य राढ़देश, आर्य मलय देश, भद्दिलनगरी आदि।
ग्रामोंकी इस सूचीसे यह सिद्ध हो जाता है कि महावीरने कुण्डपुरके षण्डवन ( जिसे ज्ञातृवंशियोंका होनेके कारण ज्ञातषण्डवन भी कहा जाता था ) में दीक्षा ली। वहाँसे कूर्मारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश पहुँचे, जो वैशाली कुण्डपुरके पास ही ज्ञातृवंशियोंके नगर थे।
बिहारके इन ग्रामोंको ध्यानपूर्वक देखनेपर यह भी पता चलता है कि वैशाली कुण्डग्रामके पास एक कोल्लागसन्निवेश था और नालन्दाके समीपवर्ती कुण्डलपुरके निकट भी एक कोल्लाग सन्निवेश था। इस प्रकारका उल्लेख हमें भगवती सूत्र में मिला, जो इस प्रकार है
___ "तीसेणं णालिन्दा वाहिरियाए अदूरसामंते एत्थणं कोल्लाए णामं सण्णिवेसे होत्था। सण्णिवेस वज्जओ। तत्थणं कोल्लाए सण्णिवेसे वहुलेणाम माहणे परिवसइ।"
कोल्लाग सन्निवेशके लिए नालन्दाके मध्यमें होकर जाना पड़ता था। कुण्डलपुर क्षेत्र
कुण्डलपुर बिहार प्रान्तके पटना जिलेमें स्थित है। यहाँका पोस्ट आफिस नालन्दा है। निकटका रेलवे स्टेशन नालन्दा है। ये दोनों यहाँ दो मीलपर हैं। पक्का रोड है। इसके पासमें गुणावा, राजगृही, पावापुरी तीर्थ हैं।
यहाँ भगवान् महावीरके गर्भ, जन्म और तप कल्याणक हुए थे, इस प्रकारकी मान्यता कई शताब्दियोंसे चली आ रही है। यहाँपर एक शिखरबन्द मन्दिर है, जिसमें भगवान महावीरकी श्वेत वर्णकी ४३ फुट अवगाहनावाली भव्य पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा वीर सं. २४८० में श्री ज्ञानदेवी ध. प. मनोहरलाल कनौड़िया कलकत्ताने प्रतिष्ठित करायी। इस प्रतिमाके अतिरिक्त यहाँ ६ पाषाण प्रतिमाएँ हैं तथा २ धातु प्रतिमाएँ हैं। मन्दिरमें गर्भगृह, प्रदक्षिणापथ तथा सभामण्डप हैं। मन्दिरके बाहर एक छतरीके नीचे भगवान्के चरण विराजमान हैं। श्री तनसुखलालसेठी अडंगाबादने यह छतर, चरण सं. २४८५ में बनवाये। मन्दिरके चारों ओर धर्मशाला है, जिसमें १९ कमरे और दो कुएँ हैं। वार्षिक मेला चैत सुदी १२ से १४ तक भगवान् महावीरके जन्म कल्याणकको मनानेके लिए होता है। क्षेत्रका प्रबन्ध भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीके तत्वावधानमें बिहार प्रान्तीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, आरा द्वारा होता है।
यह क्षेत्र आधुनिक बड़गाँव नामक ग्रामके बाहर है।
पहले यहाँ दोनोंका ही सम्मिलित मन्दिर और धर्मशाला थी किन्तु बादमें वे श्वेताम्बर सम्प्रदायके अधिकारमें चली गयीं। अनन्तर वीर सं. २४३९ में यहाँपर कलकत्ताके सेठ मुन्नालाल द्वारकादासजीकी ओर से नवीन दिगम्बर जैन मन्दिर और धर्मशालाका निर्माण किया गया।
एक बात विशेष उल्लेखनीय है। श्वेताम्बर समाज इस कुण्डलपुरको भगवान् महावीरका जन्म-स्थान नहीं मानती। इसको तो वह भगवान् महावीरके गणधर इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूतिकी जन्मभूमि मानती है। उनके अनुसार लक्खीसरायसे १८ मील तथा नवादा स्टेशनसे ३२ मील दूर लिछुआड़-क्षत्रियकुण्ड ( जिला मुंगेर ) भगवान् महावीरका जन्म-स्थान है। उसके पास ही पहाड़की तलहटीमें जो वन है, वह ज्ञातखण्ड वन है। यहीं भगवान्ने दीक्षा ली थी ऐसा उसका विश्वास है।