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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ
४७ __वैशाली कुण्डपुर तीर्थ क्षेत्र कमेटीने इस भूमिके चारों ओर सीमा-चिह्न लगाकर उसकी हदबन्दी कर दी है। यहाँ एक चौकोर कुण्ड बनाकर उसमें पक्का कमल-पुष्प बनवाकर एक शिलापट्ट पर एक ओर प्राकृतमें तथा दूसरी ओर हिन्दीमें निम्नांकित प्रशस्ति अंकित हैश्री महावीर-स्मारक
णमो जिणस्स भगवदो महावीरस्स सिद्धत्थराय-तिसलादेवी-तणए हि वडढमाण जिणे । कुण्डपुरसी विदेहे चित्त-सिया-तेरसीए उप्पण्णे ॥१।। इध जादे भगवं सइं अरहा वेसालिए महावीरे । इध तीसं वासइं संकंताई कूमार-कालस्स ।।२।। एत्तो हि से विरत्ते पव्वज्जं संजगाम णाघवणे। सच्च-अहिंसा धम्म दिदेस लोगंसि बहुकालं ॥३॥ पव्वज्जा कालंसि वि वासावासं दुवालस तहेव । तेसालिं वाणिज्जगामं नीसाए उवगए भगवं ||४|| तत्तो एस पदेसो अहल्ल इदि पूजिदो पयत्तणं । जम्म दिणे भूवइणा दिण्णो रज्जस्सं-वीर-सरणत्थं ।।५।। तज्जम्मदो हि पण-पण-पण वे वासेसु संविदीदेसु । विक्कम-गणनाएण वि-एग-खग-वे-सुवास विच्छेदे ॥६॥ इध आयादे भारह-रटुवई सई सुरज्ज-विधि-वण्णे। सिरि राजिंद पसादे पसाद-गुण-संजुदे धीरे ॥७|| . तेण सुविहि-पुव्वं इध संठविदं वीर-सारगं पुण्णं ।
जावच्चन्द दिवायर होदु थिरं वड्ढमाण संसरणं ।।८।। श्री महावीर-स्मारक
जिन भगवान् महावीग्को नमस्कार सिद्धार्थ राजा और त्रिशलादेवीके पुत्र श्री वर्धमान जिनेश्वरने विदेह प्रदेशके कुण्डपुर नगरमें चैत्र शुक्ला त्रयोदशीको जन्म लिया था ॥१॥
यही वह स्थान है, जहाँ अरहन्त भगवान् वैशालिक महावीरजीने जन्म लिया था और यहीं उनके कुमार-कालके तीस वर्ष व्यतीत हुए थे ॥२॥
इसी स्थानसे वैराग्य उत्पन्न होने पर उन्होंने ज्ञातृ-वन-खण्डमें प्रव्रज्या धारण की थी और . बहुत काल तक लोकमें सत्य-अहिंसा धर्मका उपदेश दिया था ॥३॥
प्रव्रज्या-कालमें भी भगवान्ने अपने द्वादश वर्षावास वैशाली और वाणिज्यग्राममें व्यतीत
किये थे ॥४॥
- तभीसे यह स्थल अहल्य मानकर श्रद्धासे पूजा जाता है। आज महावीर जन्मोत्सवके दिन इस भूमिके स्वामीने उसे महावीरकी स्मृति हेतु बिहार राज्यको प्रदान किया ॥५॥
___ भगवान् महावीरके जन्मसे २५५५ ( दो हजार पाँच सौ पचपन, वर्ष व्यतीत होनेपर तथा विक्रम संवत्के २०१२ वर्ष व्यतीत होने पर, महावीर-जन्मोत्सवके समय सुराज्य विधि प्रवीण, प्रसादगुण संयुक्त, धीर भारत राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसादजी यहाँ पधारे और उन्होंने विधिपूर्वक