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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
यहाँ इस महावीर स्मारककी स्थापना की, जिससे वर्धमान भगवान्का संस्मरण यावच्चन्द्र दिवाकर चिरस्थायी हो ॥६-८॥
इस शिलापट्टका अनावरण भारतके तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ. राजेन्द्रप्रसादजीने सन् १९५६ में महावीर जयन्तीके अवसरपर किया । यह स्थान वासुकुण्ड कहलाता है।
महावीरका यह जन्म स्थान चारों ओर खेतोंसे घिरा हुआ है। पासमें नहर है। यहाँसे लौटते हुए लगभग २-३ फलाँग पर पूर्वोक्त Vaishali Research Institute of Prakrit, jainology and Ahinsa का भव्य भवन बना हुआ है। इस भवनमें ही पुस्तकालय, अध्यापन कक्ष, अध्ययन कक्ष, अनुसन्धाता निवास, प्राध्यापक निवास आदिकी समुचित व्यवस्था है । कोल्लाण सन्निवेश
शोध संस्थानसे लगभग ३ कि. मी. दूर अशोक स्तम्भ है। इस स्तम्भको ईसासे लगभग २५० वर्ष पूर्व मौर्य सम्राट अशोकने अपने शासन कालके २१ वें वर्ष में बनवाया था। स्तम्भ पर कोई प्राचीन लेख नहीं है। कहते हैं, अशोकने पाटलिपुत्रसे लुम्बिनीकी मात्रा करते हुए वैशालीमें पड़ाव किया, उसीकी स्मृतिमें यहाँ उसने स्तम्भ बनवाया था। लुम्बिनीके मार्गमें अन्य स्थानों पर भी अशोक स्तम्भ मिलते हैं। यह चुनारके पत्थरकी एक ही शिलासे बनाया गया है। सातवीं शताब्दोमें चीनी यात्री ह्वेन्त्सांगने इसकी ऊँचाई ५० या ६० फीट बतायी थी, परन्तु इस समय तो जमीनसे ऊपर इसकी ऊँचाई २१ फीट ९ इंच है, शेष जमीनके नीचे है। स्तम्भका शीर्ष भाग घण्टाकार है और उसके ऊपर-ऊपरकी ओर मुँह किये हुए पूरे आकारकी सिंह-मूर्ति बनी हुई है। कनिंघमने सन् १८६१-६२ में स्तम्भके नीचे १४ फुट तक खुदाई करायी थी किन्तु पानी निकल आनेके कारण गहराईका ठीक-ठीक पता नहीं लग सका। उन्होंने शीर्षके पास परिधि ३८ इंच लिखी है। स्तम्भके ऊपर केवल एक सिंह है। वह पिछले पैरों पर बैठा है।
प्राचीन कालमें यहाँ दो स्थल उल्लेखनीय थे-एक तो मर्कट ह्रद और दूसरा कूटागारशाला। अशोक स्तम्भके निकट एक सरोवर अब भी है और उसे ही लोग मर्कट हद कहने लगे हैं। इसी प्रकार स्तम्भके निकटके एक ऊँचे टीलेको कूटागार शाला कहा जाता है।
इस गाँवका नाम-जहाँ यह स्तम्भ बना हुआ है-वर्तमानमें कोल्हुआ है। वस्तुतः इसका प्राचीन नाम कोल्लाग सन्निवेश था। यह सन्निवेश ज्ञातृवंशी क्षत्रियोंका था। वाणिज्यग्राम - अशोक स्तम्भसे पुरातत्त्व विभाग द्वारा नवनिर्मित संग्रहालयको जाते हुए मार्गमें बनिया गाँव मिलता है । यह एक छोटा-सा गाँव है। मकान प्रायः कच्चे हैं किन्तु गाँवमें सफाई खूब है। एक विशाल सरोवरके किनारे एक छोटा-सा बौद्ध मन्दिर बना हुआ है जिसमें ८वीं शताब्दी की बुद्धकी धातु प्रतिमा विराजमान है। प्राचीन भारतमें इस गाँवका नाम वाणिज्यग्राम था। भगवान् महावीरके कालमें यह नंगर वंशाली संघका सर्वाधिक सम्पन्न नगर था। श्रेष्ठियोंके निगम, चत्वर, हट्ट यहों पर थे। जल और स्थल मार्गसे व्यापार द्वारा सदर देशोंकी सम्पदा खिंचकर इस नगरमें एकत्रित होती रहती थी। मंगल पुष्करिणी
अशोक स्तम्भसे लगभग ४-५ कि. मी. और बनियागांवसे प्रायः ३ कि. मी. दूर संग्रहालय बना हुआ है । तथा पी. डब्ल्यू डी. का रैस्ट हाउस है। संग्रहालय पहुँचनेसे कुछ पहले बायीं ओर