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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
"धम्मार कुंथू कुरुवंसजादा णाहोग्गवंसेसु वि वीरपासा।
सो सुव्वदो जादववंसजम्मा णेमी अ इक्खाकु कुलम्मि सेसा" ॥४५५० अर्थात् धर्मनाथ, अरनाथ और कुन्थुनाथ ये तीन तीर्थंकर कुरुवंशमें उत्पन्न हुए। महावीर और पार्श्वनाथ क्रमसे नाथ और उग्रवंशमें, मुनिसुव्रत और नेमिनाथ यादव वंश ( हरिवंश ) में तथा शेष तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंशमें उत्पन्न हुए।
महाकवि धनंजय कृत 'नाममाला' नामक कोषमें महावीरके पर्यायवाची शब्दोंमें 'नाथान्वयः विशेष उल्लेख योग्य है।
____ "सन्मतिर्महतिर्वीरो महावीरोऽन्त्यकाश्यपः।
नाथान्वयो वर्धमानो यत्तीर्थमिह साम्प्रतम्" ॥११५॥ इसकी व्याख्या करते हुए अमरकीतिने 'नाथान्वयः' का अर्थ किया है 'नाथोऽन्वयो यस्य स नाथान्वयः' अर्थात् जिसका वंश नाथ है । भाष्यकारने इसके समर्थनमें किसी प्राचीन ग्रन्थसे एक श्लोक भी उद्धृत किया है, जिसमें तीर्थंकरों और उनके वंशोंका उल्लेख किया गया है। वह श्लोक इस प्रकार है
"चत्वारः पुरुवंशजा जिनवृषा धर्मादयस्ते पुननैमिश्रीमुनिसुव्रतो हरिकुले वीरोऽथ नाथान्वये । शेषाः सप्तदशाधिका जिनवरा इक्ष्वाकुवंशोद्भवाः
प्रोद्यन्मोहविनाशनैकनिपुणाः सङ्घस्य सन्तु श्रियै ॥" सम्पूर्ण दिगम्बर साहित्यमें जहाँ भी महावीरके वंशका उल्लेख आया है, वहाँ उनका नाथवंश ही मिलता है। नाथवंश भारतके प्राचीनतम चार वंशोंमें-से एक है। भगवज्जिनसेनाचार्यने 'आदिपुराण' में भगवान् ऋषभदेव द्वारा चार वंशोंकी स्थापनाका इतिहास इस प्रकार दिया है
"भगवान्ने हरि, अकम्पन, काश्यप और सोमप्रभ इन चार महाभाग्यशाली क्षत्रियोंको बुलाकर उनका यथोचित सम्मान और सत्कार किया। तदनन्तर राज्याभिषेक कर उन्हें महामाण्डलिक राजा बनाया। वे राजा चार हजार अन्य छोटे-छोटे राजाओंके अधिपति थे। भगवान्ने सोमप्रभका नाम कुरुराज रखा और उसे कुरुदेशका राजा बनाया तथा उससे कुरुवंश चला। भगवान्की आज्ञासे हरिने हरिकान्त नाम रखा। उससे हरिवंश चला। अकम्पनको श्रीधर नाम दिया और वह नाथवंशका नायक हुआ। और काश्यप भी भगवान्से मघवा नाम पाकर उग्रवंशका संस्थापक हुआ।"
इसी ग्रन्थमें आगे चलकर सुलोचनाके स्वयंवरके प्रसंगेमें नाथवंशका उल्लेख आया है। जब सुलोचनाने जयकुमारके गलेमें वरमाला डाल दी और सम्राट भरतके ज्येष्ठ पुत्र अर्ककीर्तिको कुछ दुष्ट लोगोंने भड़का दिया, उस समय उसका अनवद्यमति नामक मन्त्री उसे समझाते हुए कहता है
___- "जिस प्रकार निषध और नील कुलाचल मेरुपर्वतके उत्तम पक्ष हैं, उसी प्रकार भगवान् आदिनाथने पहले नाथवंश और चन्द्रवंश दोनों ही आपके कुलरूपी पर्वतके उत्तम पक्ष बनाये हैं।".
१. आदिपुराण १६।२५६ से २६१ । २. आदिपुराण ४४।३७ ।