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बिहार-बंगाल-उड़ीसाके दिगम्बर जैन तीर्थ पहुँचा । वहाँ पुष्प, ताम्बूल, जूते, आयुध वगैरह अलग किये । वस्त्रको उत्तरासंग किया, आचमन किया। परम शुचीभूत होकर हाथ जोड़कर महावीर स्वामीके पास आया।'
-भगवती सूत्र ९।३३ .. इन उल्लेखोंसे यह मालूम पड़ता है कि उत्तर क्षत्रियकुण्डपुर सन्निवेश और दक्षिण ब्राह्मणकुण्डपुर सैन्निवेश अथवा क्षत्रिय कुण्डग्रामनगर और ब्राह्मण कुण्डग्रामनगर दोनों प्रायः मिले हए थे। वास्तवमें कण्डपर सन्निवेशके दो भाग थे जिसमें उत्तरी भागमें क्षत्रियों (विशेषत ज्ञातृवंशी ) और दक्षिणी भागमें ब्राह्मणोंकी बस्ती थी। ब्राह्मणकुण्डग्रामके ईशान कोणमें प्रसिद्ध बहुशाल चैत्य था। क्षत्रियकुण्डग्रामके ईशान कोणमें कुछ आगे चलकर 'कोल्लाग' सन्निवेश था। यह सन्निवेश भी ज्ञातृवंशी क्षत्रियोंका था। क्षत्रियकुण्डपुरके बाहर ही 'ज्ञातखण्डवन' नामक एक उद्यान था जो ज्ञातृवंशियोंका था।
- वैशालीका तीसरा भाग वाणिज्यग्राम नगर था। इसमें प्रायः व्यापारी-बनिये रहते थे। यह पश्चिमकी ओर आबाद था। इसके ईशान कोणमें प्रसि
श चैत्य और उद्यान था। चैत्य और उद्यान दोनों ही ज्ञातृवंशी क्षत्रियोंके थे।
वस्तुतः वैशाली तीन भागों या जिलोंमें विभक्त थी-वैशाली, कुण्डग्राम और वाणिज्यग्राम । ये तीनों ही नगर भिन्न-भिन्न थे। ये एक दूसरेसे कितनी दूर थे, यह तो कहीं उल्लेख नहीं मिलता। किन्तु आगम ग्रन्थोंमें तथा अन्यत्र ऐसे उल्लेख प्रायः मिलते हैं, जिनसे यह मालूम पड़ता है कि ये तीनों नगर अलग-अलग बसे हुए थे। महावीर एक बार सिद्धार्थपुरसे वैशाली गये। वहाँ उनकी पूजा गणपतिने की। वैशालीसे भगवान वाणिज्यग्रामकी ओर गये। मार्गमें गण्डकी नदीको पार किया। यह उल्लेख इस प्रकार है
नाथोऽपि सिद्धार्थपुराद् वैशाली नगरीं ययौ । शङ्खः पितृसुहृत्तत्राभ्यानर्च गणराट् प्रभुम् ॥१३८।। ततः प्रतस्थे भगवान् ग्रामं वाणिजकं प्रति । मार्गे गण्डकिकां नाम नदी नावोत्ततार सः ॥१३९।।
___-त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित पर्व १० सर्ग ४ इस प्रकरणमें एक बात विशेष उल्लेख योग्य है। भगवान् कूर्मग्रामसे सिद्धार्थपुर आये थे और वहाँ से वैशाली गये थे। यदि सिद्धार्थपुरको हम कुण्डपुर स्वीकार कर लें और कूर्मग्रामको कर्मारग्राम मान लें तो यह असंगत न होगा। महावीरने आगमोंके अनुसार ज्ञातृखण्ड वनमें दीक्षा ली थी। वे वहाँसे कर्मारग्राम चले गये। सम्भवतः यह गाँव लुहारों आदि की बस्ती थी और कुण्डपुरके निकट ही बसी हुई थी।
'त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित' के उपर्युक्त उल्लेखमें कुण्डपुर न लिखकर आचार्यने महाराज सिद्धार्थके नामपर उसे सिद्धार्थपुर लिख दिया है।
यदि हमारी उक्त धारणा सही है तो इसका अर्थ यह है कि कुण्डग्राम और वैशाली निकट अवस्थित थे और वे गण्डकके प्रवी तटपर थे तथा वाणिज्यग्राम गण्डकके पश्चिमतट पर स्थित था।
३. भगवती सूत्र १०॥४, विपाक सूत्र १। ४. The
१. आचारांग २।४।२२। २. कल्पसूत्र २।२१। Life of Buddha, by Rockhill-p. 62.