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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ___ अब यह निर्णय करना शेष रह जाता है कि यह कुण्डपुर विदेहमें कहाँ अवस्थित था।
__उत्तराध्ययनसूत्रमें' भगवान् महावीरको वैशालिक कहा है- 'अरहा नायपुत्ते भगवं वेसालिए'।
"भगवती सूत्र' ( २-१-१२-२) की टीकामें अभयदेवसूरिने वैशालिकका अर्थ ही महावीर किया है। इस प्रकार वैशालीके नामपर ही महावीरका नाम वैशालिक प्रसिद्ध हो गया। उस समय वैशाली नगरीमें कुण्डग्राम शामिल था। इसलिए महावीरको जनपद ( विदेह ) की दृष्टिसे विदेह कहा गया और कुण्डग्राम वैशालीका एक उपनगर था, इसलिए उन्हें वैशालिक कहा गया।
. सारांश यह है कि कुण्डग्राम विदेह ( तिरहुत ) जनपदमें अवस्थित था और वह वैशालीका एक उपनगर था। माता-पिता-कुल-गोत्र
भगवान् महावीरके पिताका नाम सिद्धार्थ था। वे सर्वार्थ और श्रीमतीके पुत्र थे। आचार्य जिनसेनने 'हरिवंशपुराण'में राजा सिद्धार्थका परिचय बड़े सुन्दर शब्दोंमें इस प्रकार दिया है
__"सर्वार्थ-श्रीमतीजन्मा तस्मिन् सर्वार्थदर्शनः।
सिद्धार्थोऽभवदर्काभो भूपः सिद्धार्थपौरुषः ।। २।९३ ।" अर्थात् राजा सर्वार्थ और रानी श्रीमतीसे उत्पन्न, समस्त जनोंके हितको देखनेवाले, सूर्यके समान तेजस्वी और समस्त अर्थ पुरुषार्थको सिद्ध करनेवाले सिद्धार्थ वहाँके राजा थे। इसी प्रकार आचार्य जिनसेनने महावीरकी माता त्रिशलाका परिचय देते हुए लिखा है
"उच्चैःकुलाद्रिसम्भूता सहजस्नेहवाहिनी। महिषी श्रीसमुद्रस्य तस्यासीत् प्रियकारिणी ॥ चेतश्चेटकराजस्य यास्ताः सप्तशरीरजाः ।।
अतिस्नेहाकुलं चक्रुस्तास्वाद्या प्रियकारिणी ॥" -हरिवंशपुराण २।९६-१७ । जो उच्चकुलरूपी पर्वतसे उत्पन्न हुई स्वाभाविक स्नेहकी मानो नदी थी, ऐसी प्रियकारिणी लक्ष्मीके समुद्र स्वरूप राजा सिद्धार्थकी पटरानी थी। जिन सात पुत्रियोंने राजा चेटकके चित्तको अत्यधिक स्नेहसे व्याप्त कर रखा था, उन पुत्रियोंमें प्रियकारिणी सबसे बड़ी पुत्री थी।
राजा सिद्धार्थका कोई दूसरा भी नाम था, ऐसा कोई उल्लेख दिगम्बर परम्पराके शास्त्रोंमें कहीं हमारे देखने में नहीं आया। किन्तु श्वेताम्बर सूत्र साहित्यमें उनके नाम-सिद्धार्थ, श्रेयान्स और यशस्वी मिलते हैं।
महारानी त्रिशलाके नाम भी एकसे अधिक प्राप्त होते हैं। दिगम्बर परम्परामें उनके दो नाम बताये गये हैं-प्रियकारिणी और त्रिशला । श्वेताम्बर सूत्रोंमें उनके तीन नाम मिलते हैंत्रिशलादेवी, विदेहदित्रा और प्रियकारिणी।
___ इसी प्रकार भगवान् महावीरके नाम भी अनेक मिलते हैं-"वीर, वर्धमान, सन्मति, महावीर, श्रमण अथवा महाश्रमण ।
१. उत्तराध्ययन सूत्र ६१७ । २. आचारांग २।२४।१२-१५, कल्पसूत्र ५। ३. हरिवंशपुराण २।१६-१८ । ४. आचारांग २।२४।१२-१५, कल्पसूत्र ५। ५. उत्तरपुराण ७४।२७६ । ६. उत्तरपुराण ७४।२७६ । ७. उत्तरपुराण ७४।२८३ । ८. उत्तरपुराण ७४।२९५ । ९. आचारांग २।२४।१२-१५, कल्पसूत्र ५।