Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
SONG
मंदर चूलिका उपर सिंहासनमा बेठेल पोताना आत्माने जोई तेओ जाग्या.
१५शतके जपणं समणं भगवं म० एगं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पा. जाव पडिबुद्ध तणं समणेणं
उद्देश६ भगवया महा. मोहणिले कम्मे मूलाओ उग्यापिए १ जन्नं समणे भ० म०पगं महं सुकिल्लजाय पडिबुद्धे तण्णं | ॥१३९॥
॥१३९७॥ समणे म.म. सुकन्झाणोवगए विहरति २ जण समणे भ०म० एग महं चित्तविचित्तजाव पडिबुद्धे तणं समणे भ० म० विचित्त ससमयपरसमइयं दुवालसंग गणिपिडगं आघवेति पनवेति परवेति दंसेति निदंसेति उवदसति, तंजहा-आयारं सूयगडं जाव दिहिवायं ३, जपणं समणे भ० म० एमं महं दामदुगं सम्वरपणामयं सुविणे पासित्ताण पडिबुद्धे तण्णं समणे भ०म० दुविहं धम्म पन्नवेति, तं०-आगारधम्म वा अणागारधम्म वा ४, जपणं समणे भ० म० एगं महं सेयगोवरगं जाव पडिवुद्धे तपणे समणस्स भ० म० चाउव्वण्णाइन्ने समणसंघे, तं०समणा समणीओ साविया सावियाओ५, जपणं समणे भ० म० एग महं पउमसरं जाव पडिबुद्धे तणं समणे जाव वीरे चउठिबहे देवे पनवेनि, तं०-भवावासी वाणमंतरे जोतिसिए वेमाणिए ६, जन्नं समणे भग०म०
एग महं सागरं जाव पडिबुद्धे तन्नं समणेणं भगवया महावीरेणं अणादीए अणवदग्गे जाव संसारकतारे तिन्ने २७, जन्न समणे भगवं म० एग महंदिणयरं जाव पडिबुद्धे तन्न समणस्स भ०म० अगते अणुत्तरे नि०नि० क. दापडि केवल दस०] (जाव) समुप्पन्ने ८, जपणं समणे जाव वीरे एग महं हरिवेरुलिय जाय पडिबु० तण्ण सम-16
स्सि भ० म० ओराला कित्तिवनसासिलोया सदेवमणुयामुरे लोए परिभमंति-इति खलु समणे भगवं महा
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