Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 464
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञसिः ॥१३९० ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कहो होते तेमज मानुं हुं विशेष ए के हे देवानुप्रिय ! मारा मोटा पुत्रने कुटुंबनो मुख्यभूत स्थापने आप देवानुप्रियनी पासे झुंड थई यावत् प्रब्रज्या लेवा इच्छु छु. (श्रीमुनिसुव्रत स्वामीए कछु के) हे देवानुप्रियि ! जेम सुख थाय तेम कर, विलंब न कर. नए णं से गंगद गाहावई मुणिसुच्वएणं अरया एवं वृत्ते समाणे हद्वतुट्टः मुणिसुब्वयं अरिहं वंदति नर्मसति, बंदति न० मुनिसुव्वयस्स अरहओ अंतियाओ सहसंबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमति ०२ जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव सए गिहे तेणेव उवा० २ बिउलं असणं पाणं जाव उबक्खडावेति उ० २ मित्तणातिगिजाब आमंतेति आमंतेत्ता तओ पच्छा पहाए जहा पूरणे जाव जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेति तं मित्तणाति जाव जेट्ठपुत्तं च आपुच्छति आ०२ पुरिससहस्सवाहणियं सीगं दुरूहति पुरिससह० २ मित्तणातिनियगजाय परिजणेणं जेइपुसेण य समणुगम्ममाणमग्गे सब्बिड्डीए जावणादितरवेणं हत्थिणागपुरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ नि० २ जेणेव महसंयत्रणे उज्जाणे तेणेव उवा० २ छत्तादिते नित्थगरातिमए पामति एवं जहा उदायो जाब सयमेव आभरणं मुग्रइ स० २ सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति स २ जेणेव मुणिसुब्बए अरहा एवं जहेब उदायणो तहेव इए, तब एक्कारस अंगाई अहिबह जाब मासियाए संलेहणाए सहि भत्ताई अणसणाए जाव छेदेति सट्ठि भत्ताइं० २ आटोग्रपडिते समाहिपत्ते कालमासे कालं किवा महासुके कप्पे महामामाणे विमाणे उबवायसभाए देवसयणिसि जाव गंगदत्तदेवताए उयन्ने, तर णं से गंगदत्ते देवे अहुणोववन्नमेत्तर समाणे पंचविहाए पत्तीए पजत्तिभावं गच्छति, तंजड़ा-आहारपज्जत्तीए जाब भासामणपबत्तीए, एवं खलु गोयमा ! गंगद For Private And Personal १६ शतके उद्देश५ ॥१३९०॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524