Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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इत्तेणं देवेणं सा दिव्या देवड्डी जाव अभिसमः । गंगदत्तस्स णं भंते ! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता, गोन। व्याख्या यमा! मत्तरससागरोवमाई ठिती, गंगदत्ते णं भंते । देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं जाव महाविदेहे चासे
I४१६ शतके
उद्देश:५ सिरिसहिति जाव अंतं काहिति ॥ "सेवं भंते ! सेवं भंते।'त्ति॥ (सूत्रं ५७७) ।। १६-५॥ ॥१३९१॥
॥१३९१॥ ज्यारे ते मुनिसुव्रत स्वामीए ते गंगदत्त नामे गृहपतिने र प्रमाणे कात्यारे ते हर्षयुक्त अने संतोषयुक्त थई मुनिसुव्रत खामीने बांदी, नमी मुनिसुव्रत स्वामी पासेथी सहखाम्रवण नामना उद्यानयी नीकळी जे तरफ हस्तिनापुर नगर के अने ज्या पोतार्नु घर छे त्यां आव्यो. आवीने विपुल अशन, पान-यावत्-तैयार करावी पोताना मित्र, ज्ञाति स्वजन वगेरेने नोतर्या. पडी स्नान करी पूरण शेठनी पेठे यावत्-पोताना मोटा पुत्रने कुटुंबमा मुख्य तरीके स्थापी पोताना मित्र, ज्ञाति स्वजन वगेरेने तथा मोटा पुत्रने पूछी हजार पुरुषवडे उपाडी शकाय तेवी शिविकामां बेसी, पोताना, मित्र, ज्ञाति. स्वजन यावत् परिवारवडे तथा मोटा पुत्रवडे अनुसरातो सर्व ऋद्धिसहित यावत्-वादिनना थता घोषपूर्वक हस्तिनापुरनी वच्चोवञ्च निकली जे तरफ सहस्राप्रवण नामे उद्यान छे, ते तरफ आची तीर्थकरना छत्रादि अतिशय जोई यात्रत-उदायन राजानी पेठे यावत्-पोतानी मेळेज पोताना घरेणा उतार्या अने पोतानी मेळेज पंचमुष्टिक लोच कयों. त्यार बाद श्रीमनिसुव्रतस्वामीनी पासे जई उदायन राजानी पेठे दीक्षा लीधी. यावत्-तेज प्रमाणे ते गडदच अणगार अगीयार अंगो भयो, यावद-एक मासनी संलेखना बडे साठ भक्त-त्रीश दिवस अनशनपणे वीतानी
आलोचन-प्रतिक्रमण करी समाधिपूर्वक मरणसमये मृत्यु प्राप्त करी ते महाशुक्र करपमा महासामान्य नामना विमानमा उपपात | सभाना देवशयनीयमा यवान-गंगदत्त देवपणे उत्पन्न भयो, पछी ते तुरतज उत्पम थलो गंगदत्त देव पांच प्रकारनी पर्याप्तिवडे ||
RECENSECRUARMk
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