Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 497
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रतिः ॥ १४२३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अधम्मेठिया धम्मात्रम्मेवि ठिया, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइस वेमाणिया जहा नेर० (सू० ५९५) ।। [प्र० ] हे भगवन् । संयत, प्राणातिपातादिथी विरतिवाळो अने जेणे पापकर्मनो प्रतिघात अने प्रत्याख्यान कर्तुं छे एवो जीव चारित्र धर्ममां स्थित होय, असंगत, अविरत अने जेणे पापकर्मनो प्रतिघात अने प्रत्याख्यान कर्तुं नथी एवो जीव अधर्ममां स्थित होय, तथा संयतासंयत जीव धर्माधर्ममां स्थित होय ? [अ०] हे गौतम! हा, संयत अने विरत जीव धर्ममां स्थित होय, संयतासंयत जीत्र यावत्-धर्माधर्ममां स्थित होय. [प्र० ] हे भगवन् ! ए धर्ममा, अधर्ममा अने धर्माधर्ममां कोइ जीव बेसवाने यावद| आळोटवाने समर्थ के ? [30] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी (अर्थात्-ते जीवनो स्वभाव होवाथी धर्ममां, अधर्ममां के धर्माधर्ममां कोड़ जीव बेसी शकतो नथी.) [प्र०] हे भगवन् ! या कारणथी आप एम कहो छो के— 'यावद-धर्माधर्ममां स्थित होय' ? [३०] हे गौतम! संयत, विरत अने जेणे पापकर्मनुं प्रत्याख्यान कयूँ छे एवो जीव धर्ममां स्थित होय एटले धर्मनो आश्रय करी स्वीकार करीने विहरे ए प्रमाणे असंगत, अविरत अने जेणे पापकर्मनुं प्रत्यख्यान कर्तुं नथी एवो जीव अधर्ममां स्थित होय - एटले अधर्मनो आश्रय करी विहरे, तथा संयतासंयत जीव धर्माधर्ममां स्थित होय- एटले जीव धर्माधर्मनो देश विरतिनो आश्रय करी विहरे, ते माटे हे गौतम! यावत्- 'स्थित होय'. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं जीवो धर्ममां स्थित होप, अधर्ममां स्थित होय के धर्माधर्ममां स्थित होय ? [उ०] हे गौतम! जीवो धर्ममां पण स्थित होय, अधर्ममां पण स्थित होय अने धर्माधर्ममां पण स्थित होय. [ प्र० ] हे | भगवन् ! ए प्रमाणे नैरयिक संबन्धे पृच्छा करवी. [३०] हे गौतम! नैरयिको धर्ममां स्थित न होय, तेम धर्माधर्ममां स्थित न होय, पण अधर्ममां स्थित होय. ए प्रमाणे यावत्-चउरिन्द्रिय जीवो सुधी जाणवुं [प्र० ] पंचेन्द्रिय तिर्येच जीवो संबन्धे पृच्छा. For Private And Personal | १७ शतके उar ||| १४२३ ॥

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