Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 498
________________ Shri Mahavir Jain Ar e ndra www.kobatirth.org पालपंडिया | CO हमेयं भंते Acharya Shri garsuri Gyanmandir उ.] गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यच जीवो धर्ममा स्थित नथी, पण तेओ अधर्ममां अने धर्माधर्ममा स्थित छे. मनुष्योने विषे सामान्य व्याख्या४ाजीवोनी पेठे वक्तव्यता कडेची. वानव्यंतरो, ज्योतिषिको अने वैमानिको विषेनी वक्तव्यता नैरयिकोनी पेठे कहेगी. ॥ ५९५॥ १७ प्रज्ञप्ति ॥१४२४॥ अन्नउस्थिया णं भंते ! एकमाइक्वंति जाव परूवेति-एवं खलु समणा पंडिया समणोवासपा पालपंडिया ॥२५२ जम्स णं एगपाणाएवि दंडे अणिक्वित्ते से णं पगंतवालेत्ति वत्तव्वं सिया, से कहमेयं भंते ! एवं , गोयमा! जपणं ते अन्नउत्थिया एकमाइक्वंति जाय वत्तवं मिया, जे ते एकमाइंसुमिच्छ ते एवमा०, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्वामि जाय परवेमि एवं खलु ममणा पंडिया समतोवासगा बालपंडिया जस्स णं एगपाणाएवि दंडे निश्वित्ते से गं नो एगनबालेत्ति वत्तब्वं सिया ॥ जीवाणं भंते। किं याला पडिया वालपंडिया', गोयमा! जीवा यालावि पंडियावि बालपंडियावि, नेरल्याण पुच्छा, गोयमा! नेरइया बाला नो पंडिया नो बालपंडिया, एवं जाव चउरिदिगाणं, पंचिंदियतिरिक्व० पुच्छा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया बाला नो पंडिया बालपडियाधि, मणुस्मा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नेरइया (सूत्रं ५९६)। ०] हे भगवन् ! अन्यतीथिको एम कहे , यावत् एम प्ररूपे के के 'श्रमणो' पंडित कहेवाय के अने श्रमणोपासको बालपंडित कवाय हे, पण जे जीवने एक पण जीवना बधनी अविरति छे ते जीव 'एकांत बाल' कडेवाय, तो हे भगवन् ! आ (अन्यतार्थिकोर्नु कथन) सत्य केम होय ! [उ.] हे गौतम! जे अन्यतीथिको आ प्रमाणे कहे ? के यावत्-एकान्त बाल' कडेवाय, परन्तु | जेओए एम कयं तेओए मिथ्या-असत्य का छे, हे गौतम! हुं तो आ प्रमाणे कहुं छु-यावत् प्ररूपंछ के-ए प्रमाणे खरेखर 181 KA For Private And Personal

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