Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 502
________________ www.kobatirth.org व्याख्या-16 Shri Mahavir Jain lendra Acharya Shri r agarsuri Gyanmandir लुक्खत्ते वा, से तेणट्टेणं जाव निद्वित्तए वा ।। सेवं भंते ! ति (सूत्रं ५९८ ) ॥ १७-२॥ 151 [३०] हे भगवन् ! मोटी ऋद्धिबाळो, यावत्-मोटा सुखवाळो देव पहेलो रूपी होईने-मूर्त स्वरूप धारण करी पछी अरूपी रूप प लके प्रज्ञप्तिः है (अमूर्त रूप) विकुम्ने रहेवा समर्थ छ ? [उ०] ते अर्थ समर्थ नथी. प्रि०] हे भगवन् ! आप ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के उद्देशा२ ॥१४२८४ 'मोटी ऋद्धिघालो देव यावत्-अरूपी रूप विकुर्वीने रहेका समर्थ नथी'' [उ०] गौतम! हु ए जाणुं छु, हुए जोउं छु, हुंए नि- ४ ॥१४२८॥ चित जाणु छु, हुंए सर्वथा जाणु छु, में ए जाण्युं छे, में ए जोयु छ, में निश्ति जाण्यु छ अने में ए सर्वथा जाण्यु छ के, तेवा प्रकारना रूपवाळा, कर्मवाळा, रागबाळा, वेदवाळा, मोहवाळा, लेश्यामाळा, शरीरवाला अने ते शरीरथी नहि मुकायेला-जूदा नहीं थयेला जीवने विषे एम जगाय छ, से आ प्रमाणे-ते शरीरयुक्त जीवमा-काळापणु, यावत्-धोळापणुं, सुगंधिपणु के दुर्गधिषणु, कडवाणु के याव-मधुरपणु, तथा कर्कशपणुं के याचच-रुक्षपणुं होय छे, माटे हे गौतम ! ते हेतुथी ते देव पूर्व प्रमाणे यावत्अरूपी रूप विकुर्ववा समर्थ नथी. [१०] हे भगवन् ! तेज देवरूप जीव पहेला अरूपी थईने पछी रूपी आकार विकृर्ववा समर्थ छ? [उ.] ए अर्थ समर्थ नधी-इत्यादि यावत्-'विकुर्वबा समर्थ नथी' त्यांसुधी जाणवू. कारण के हे गौतम ! हुए जाणुं छु के, यावत्रूप विनाना, कर्म विनाना, राग विनाना, वेद विनाना, मोह विनाना, लेश्या विनाना, शरीर विनाना अने शरीरथी जूदा थयेला तेवा प्रकारना जीवने विषे एम जणातुं नथी के, ते जीवमा काळापणुं यावत्-लुखापणुं छे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी यावत्-ते देव | पूर्व प्रमाणे चिकुवा समर्थ नथी. "हे भगवन् । ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे." ।। ५९८ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमूत्रना १६ मा शतकमां चीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private And Personal

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