Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 518
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४४४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शतक १७. (उद्देशक ११) बाउकाइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए स० २ जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए हथुवाए वायवल तणुवाद्यवलएसु बाउकाइयत्ताए उबवजेत्तर से णं भंते! सेसं तं वेब एवं जहा सोहम्मे बाउकाइओ सत्तवि पुढीसु उवबाइओ एवं जाव ईसिप भाराए वाउक्काइओ अहेसत्तमाए जाय उबवायचो, सेवं भंते ! २ ।। (सूत्रं ६१० ) ।। १७-११ ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! जे वायुकायिक जीव सौधर्मकल्पमां समुद्धात करी आ रत्नप्रभा पृथिवीना घनवाद, तनुवाद, घनत्रातव लयो के तनुवातवलयोमां वाकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य के ते हे भगवन् !-इत्यादि प्रश्न. [30] बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवुं. अने जेम सौधर्मकल्पना वायुकायिकनो साते पृथिवीमां उपपात कह्यो छे ते प्रमाणे यावत्-ईषत्प्राग्मारा पृथिवीना वायुकायिकनो यावत्-अधःसमय पृथिवीपर्यंत उपपात कडेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज से, हे भगवन् ! ते एमज छे.' ॥ ६१० ॥ मग सुधर्मस्वामणी श्रीमद् भगवतीसूत्रना १७ मा शतकमां अगीयारमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. शतक १७. (उद्देशक १२) एनिंदियाणं भंते! सच्चे समाहारा सच्चे समसरीरा एवं जहा पढमसए बितिषउद्देसर पुढविकाइयाणं | वत्वा भणिया सा चैव एर्गिदियाणं इह भाणियव्त्रा जात्र समाउया समोववनगा । एगिंदिया णं भंते! क For Private And Personal १७ शतके उद्देशः ११ ॥१४४४७

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