Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या प्रज्ञप्ति
॥१४॥३॥
RRCHCRACKERSARKAR
अह भंवे! संबेगे निब्वेए गुरुसाहम्मियसुस्मृमणया आलोयणया निंदणया गरहणया खमावणया सुयसहायता विठसमणया भावे अप्पडिबद्धया यिणिवणया विचित्तसयाणासणसेवणया सोइंदियसंवरे जाव फासिं
१७ शतक
उमेश वियसंबरे सोमपच्चरवाणे सरीरपञ्चक्रवाणे कसायपञ्चग्वाणे संभोगपञ्चक्खाणे उवहिपचक्रवाणे भत्तपञ्चक्रवाणे
१४३३॥ स्त्रमा विरागया भावसच्चे जोगसच्चे करणसच्चे मणसमण्णाहरणया वयसमन्नाहरणया कायममन्नाहरणया कोह|विवेगे जावमिच्छादसणसल्लविवेगे गाणसंपन्नया सणस. चरित्तसं वेदणअहियासणया मारणंतियअहियास
या एएणं भंते ! पया किंपज्जवसाणफला पण्णता? समणाउसो, गोयमा! संवेगे निब्वेगे जाव मारणतियअहियास एए णं सिद्धिपज्जवसाणफला पं० समणाउसो।। सेवं भंते ! २ जाच विहरति (सू०६०१)॥१७-३॥
[H०] हे भगवन् ! संवेग-मोक्षनो अभिलाप, निर्वेद-संसारथी विरक्तता, गुरुओनी तथा साधर्मिकोनी सेवा, पापोनी आलो। चना-गुरु समक्ष कथन, निंदा-आत्मद्वारा दोपोनी निन्दा, गर्दा-परसमक्ष पोताना दोपो प्रगट करवा, क्षमापना, उपशांतता, श्रुतस
हायता-श्रुताभ्यास, मावाप्रतिवद्धता-हास्वादि भावोने विये अप्रतिबंध, पापस्थानोथी निवृत्त वु, विविक्तशयनासता-च्यादिरहित है। वसति अने आसननो उपयोग, श्रोत्रेन्द्रियसंवर, यावत्-स्पर्शेन्द्रियसंबर, योगप्रत्याख्यान, शरीरप्रत्याख्यान, कषायप्रत्याख्यान, 17
संभोगप्रत्याख्यान, उपधिप्रत्याख्यान, भक्तप्रत्याख्यान, क्षमा, विरागता, भावसत्य, योगसत्य, करणसत्य-प्रतिलेखनादि क्रियानु यथार्थ करवू, मनःसमन्बाहरण-मननुं संगोपन, वचःसमन्बाहरण-वचनसंगोपन, कायसमन्दाहरण-कायसंगोपन, क्रोधनो त्याग, यावत्-मिथ्यादर्शनशल्यनो त्याग, ज्ञानसंपन्नता, दर्शनसंपन्नता, चारित्रसंपन्नता, क्षुधादि वेदनामां सहनशीलता अने मारणान्तिक
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