Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 499
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir RECECRECRU . १७ शतक उमेश ॥१४२५॥ R है श्रमणो पंडित के अने श्रमणोपासको बालपंडित है, पण जे जीवे एक पण प्राणिना वधनी विरति करी के ते जीव 'एकांतवल' न व्याख्या कवाय, ( परन्तु 'बालपंडित' कहेवाय) [प्र०] हे भगवन् ! शु जीवो बाल-विरतिरहित छ, पंडित-सर्वविरतिवाळा छ के बालपंप्रक्षतिः डित-देवविरति युक्त छे? [उ०] हे गौतम! जीवो वाल पण छे, पंडित पम छे अने वालपंडित पण छे (म०] नरयिको संबन्धे २४२५॥ दाए प्रमाणे प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! नैरपिको बाल छ, पण पंडित नथी, तेम बालपंडित पण नथी. ए प्रमाणे दंडकना क्रमथी यावत्-चउरिद्रियो सुधी जाणवु. [३०] पंचेन्द्रिय तिर्यचो संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यचो पाल अने पालपंडित होय छे, पण पंडित होता नथी. मनुष्यो संबंधे सामान्य जीवोनी वक्तव्यता कहेवी. तथा वानव्यतर, ज्योतिषिक अने है। वैमानिक संबंधे नैरयिकनी वक्तव्यता (सू० ७) कहेवी. ॥ ५९६ ॥ | अबउत्थिया णं भंते ! एचमाइक्खंति जाव परूवेति-वं खलु पाणातिवाए मुसावाए जाव मिच्छादसण. | सल्ले वट्टमास्स अन्न जीवे अने जीवाया पाणावायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे कोहविवेगे जाप मिच्छादंस सल्लविवेगे वहमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया, उपपत्तियाए जाव परिणामियाए वहमाणस्म अन्ने जीवे अन्ने जीवाश, उपपत्तियाए उग्गहे ईहा अवाए धारणाए वहमाणस्स जाव जीवाया, उहाणे जाव परक्कमे बद्दमाणस्स जाव जीवराया, नेरइयत्त, तिरिवखमणुस्सदेवत्ते वद्यमाणस्स जाव जीवाया, नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए वट्टमा| जस्स जाव जीवाया, एवं कण्हलेस्साए जाव सुकलेस्साए, सम्मदिट्टीए ३ एवं चरखुदंसणे ४ आभिणियोहिय. नाणे ५ मतिअनाणे ३ आहारसन्नाए ४ एवं ओरालियसरीरे ५ एवं मणजोए ३ सागारोवओगे अणागारोवओगे A GAR ESULT For Private And Personal

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