Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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४/१७शतके
उशार ॐ॥१५२१
एरीते पृथिवीकायिक संबन्धे कहेचुं, तथा ए प्रमाणे दंडकना क्रमथी यावत्-मनुष्य सुधी जाणq. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक व्याख्या
| शरीरने बांधता अनेक जीवोने केटली क्रियाओ लागे ! [उ०] हे गौतम ! तेओने कदाचित् त्रण क्रियाओ, कदाचिन् चार क्रियाओ प्रज्ञप्तिः ॥१४२१॥
अने कदाचित् पांच क्रियाओ लागे ए प्रमाणे यावत् दंडकना क्रमथी पृथिवीकायिको सुधी जाणवू. तथा ए क्रमथी यावत्-मनुष्यो सुधी जण. ए प्रमाणे बैंक्रिय शरीर संबन्धे पण एक वचन अने बहुवचनने आश्रयी बे दंडको कहेवा. परन्तु जे जीवोने वैक्रिय शरीर होय ते जीवोने आश्रयी कहेवु ए प्रमाणे यावत्-कार्मणशरीर सुधी समजवु. श्रोत्रेन्द्रियथी आरंभी यावत्-स्पोन्द्रिय सुधी पण एज क्रमथी जाणवु. वळी मनयोग, वचनयोग अने काययोग विषे पण ए प्रमाणे कहेवु, परन्तु जेने जे योग होय तेने ते योगसंचन्धे कई. एम वधा मळीने एकवचन अने बहुवचनने अश्रयी छब्बीश दंडको कहेवा. ।। ५९३ ।। । कतिविहे णं भंते ! भावे पण्णत्ते?, गोयमा! छविहे भावे प०,०-उदइए उवसमिए जाव सन्निवाहए, |से किं तं उदहए ?, उदए भावे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा--उदइए उदयनिप्फन्ने य, एवं एएणं अभिलावेणं जहा अणुओगदारे छन्नाम तहेव निरवसेसं भाणियब्वं जाव से तं सन्निवाइए भावे ।। सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ।। (सू० ५९४ ) ॥ १७-१॥ | [प्र०] हे भगवन् ! भाव केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! भाव छ प्रकारना कह्या . ते आ प्रमाणे-१ औदहायिक, २ औपशमिक, यावत्-६ सांनिपातिक. [प्र०] हे भगवन् ! औदयिक भाव केटला प्रकारे कह्यो छे. [उ०] हे गौतम! औद
यिक भाव वे प्रकारे कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-औदायिक अने उदयनिष्पन्न. ए प्रमाणे आ अमिलाप बडे अनुयोगद्वारमा जेम छ
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