Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatrth.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir
शतक १७. (उद्देशक १.) व्याख्या-1
५१७शतके
उद्देशः नमो सुगदेवयाए भगवईए ॥ कुंजर १ संजय २ सेलेसि ३ किरिय ४ ईसाण ५ पुढवि ६-७ दग ८-९ वाज
१४१५॥ १०-११ । एगिदिय १२ नाग १३ सुबन्न १४ विज्जु १५ गयु १६ ऽग्गि१७ सत्तरसे ॥ ७७ ।।
(उद्देशक संग्रह-) १ कुंजर-कोणिकना प्रधान हस्ती संबन्धे प्रथम उद्देशक, २ संयतादि संबन्धे बीजो उद्देशक, ३ शैलेशी प्राप्त 31 अनगार संबन्धे त्रीजो उद्देशक, ४ किया-कर्म संबन्धे चोथो उद्देशक, ५ ईशानेन्द्रनी सुधर्मासभा संबन्धे पांचमो उद्देशक, ६-७
पृथिवीकायिक संवन्धे उट्ठो अने सातमो उदेशक, ८-९ अकायिक संबन्धे आठमो अने नवमो उद्देशक, १०-११ वायुकायिक | संबन्धे दशमो अने अगीयारमो देशक, १२ एकेन्द्रिय जीव संबन्चे बारमो उद्देशक, १३-१७ नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार 5 अने अग्निकुमार संबन्धे अनुक्रमे तेस्थी आरंभी सत्तर उद्देशको-ए प्रमाणे सत्तरमा शतकमां सत्तर उद्देशको कहवामां आवशे.
रायगिहे जाय एवं वयासी-उदायी णं भंते ! हथिराया क ओहिंतो अणंतरं उब्वहित्ता उदायिह स्थिरायत्ताए उववनो?, गोयमा! असुरकुमारेहिंतो देवहितो अणंतरं उब्वहिता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने, उदायी भंते! हस्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति कहिं उपजिहिति? गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमठितीयंसि निरयावासंसि नेरहयत्ताए उववजिहिति, से ण भंते ! तओहितो अणंतरं उचहत्ता कहिं ग० कहिं उ०१, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति ॥ भूयाणंदे णं भंते ! हत्थिराया
RECRACKERAKACHOOM
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524