Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
क्षतिः ॥। १३९९ ।।
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अनादि अने अनन्त यावत्-संसाररूप कांतारने पार कर्यो. (८) श्रमण भगवंत महावीरे (आठमा स्वप्नमां) जे तेजथी जळहळतो एक मोटो सूर्य जोयो अने जाग्या तेथी श्रमण भगवंत महावीरने अनंत, अनुत्तर, निरावरण, निर्व्याघात, समग्र अने प्रतिपूर्ण एवं केवळ | ज्ञान अने केवळ दर्शन उत्पन्न थयुं. (९) श्रमण भगवंत महावीरे (नवमा स्वप्नमां) एक मोटा मानुषोत्तर पर्वतने नील बैडूर्यना वर्ण जेवा, पोताना आंतरडाथी चारे बाजुए आवेष्टित अने परिवेष्टित करेलो जोयो अने जोइने जाग्या तेथी श्रमण भगवंत महावीरनी देवलोक, मनुष्यलोक अने असुरलोकमां- "आ श्रमण भगवंत महावीर के" एवी उदार कीर्ति, स्तुति, सन्मान अने यश व्याप्त थया. (१०) श्रमण भगवंत महावीरे (दशमा स्वप्नमां) पोताना आत्माने मंदरपर्वतनी चूलिका परना सिंहासनमां बेठेलो जोयो अने जोईने जाग्या तेथी श्रमण भगवंत महावीरे केवळी थई देव, मनुष्य अने असुर युक्त परिषदमां बेसी धर्म कह्यो, यावत् - उपदर्शायो ५८० इत्थी वा पुरिसे वा सुबिर्णते एगं महं पंति वा गयपति वा जाव वसमपति वा पासमाणे पासति दुरु हमाणे दुरूहति दुरूढमिति अप्पाणं मन्नति तग्वणामेव बुज्झति तेणेव भवरगहणेणं सिज्झति जात्र अंत करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुविणंते एवं महं दामिणिं पाईणपडिणायतं दुहओ समुद्दे पुढं पासमाणे पासति संवेलेमाणे संवेल्ले संवेल्लियमिति अप्पाणं मन्नति तक्खणामेव बुज्झति तेणेव भवग्गहणेणं जाव अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसेना एवं महं रज्जु पाईणपडिणायतं दुहओ लोगंते पुढं पासमाणे पासति छिंदमाणे छिंदति छिन्नमिति अपाण मन्नति तखणामेव जाव अंतं करेति । इत्थी वा पुरिसे वा सुबिर्णते एगं महं किन्हसुत्तगं वा जाब सुकिल्लत्तगं वा पासमाणे पासति उग्गोवेमाणे उग्गोवेह उग्गोवितमिति अध्पाणं मन्नति तक्वणामेव जाव
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१६ शतके
उद्देशः६ ॥१३९९ ॥

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