Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandit
www.kobatirth.org
१६वके
प
वीरे इति०९, जन्नं समणे भगवं महावीरे मंदरे पच्चए मंदरचूलियाए जाव पडिबुद्धे तणं समणे भगवं महावीरे व्याख्याप्रज्ञप्तिः 18 सदेवमणुासुराए परिसाए मझगए केवली धम्मं आघवेति जाव उवदंसेति ॥ (सूत्रं ५८०)॥
उमेशा दा (१) श्रमण भगवंत महावीर (प्रथम स्खममा ) जे भयंकर अने तेजस्वी रूपवाळा तथा ताडना जेचा एक पिशाचने पराजित
करेलो जोईने जाग्या तेथी (तेना फळरूपे) श्रमण भगवंत महावीरे मोहनीय कर्मने मूलथी नष्ट कयु. (२) श्रमण भगवंत महावीरे (बीजा स्वप्नमा) जे एक मोटो धोळी पांखवाळो यावत-पुस्कोकिल जोयो अने जाग्या तेथी तेना फळरूपे श्रमण भगवंत महावीर
शुक्ल ध्यान प्राप्त करी विहर्या. (३) श्रमण भगवंत महावीर (वीजा स्वप्नमा) जे एक मोटो चित्र विचित्र पांखवाळो यावत्-पुस्को. |किल जोईने जाग्या नेवी श्रमणभगवंत महावीरे विचित्र स्खसमय अने परसमयना (विविध विचारयुक्त) द्वादशांग गणिपिटक कबु. का प्रज्ञाप्यु, दर्शाब्यु. निदव्युं अने उपदर्शव्यू. ते द्वादशांगना नाम आ प्रमाणे छे-(१) आचार (२) सूत्रकृत, यावत्-(१२) दृष्टिवाद.४
(४) श्रमण भगवंत महावीरे (चोथा स्वप्नमां) जे एक महान् सर्वरत्नमय मालायुगल जोडे अने जाग्या तेथी श्रमण भगवंत महावीरे वे प्रकारनो धर्म कहो, ते आ प्रमाणे-सामार धर्म अने अनगार धर्म. (५) श्रमण भगवंत महावीर (पांचमा स्वप्नमा) जे एक धोळी गायोनुं महान् धण जोईने जाग्या तेथी श्रमण भगवंत महावीरनो चार प्रकारको संघ थयो, ते आ प्रमाणे-१ साधु, २ साध्वी. ३ श्रावक अने ४ श्राविका. (६) श्रमण भगवंत महावीरे (छट्ठा स्वप्नमा) जे एक मोटुं यावत्-पम सरोवर जोईने जाग्या तेथी श्रमण | भगवंत महावीरे भवनवासी, वानव्यं तर, ज्योतिषिक, अने वैमानिक एवा चार प्रकारना देवोने प्रतिबोध को. (७) श्रमण भगवंत महावीरे (सातमा स्वप्नमा) जे एक मोटा यावद महासागरने पोते हाथ वडे तरेलो जोयो अने जाग्या तेथी श्रमण भगवंत महावीरे181
CARRI
BREAKERG
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524