Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४१०॥
संकोचवा के पसारवा समर्थ के ? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी. [प्र०] हे भगवन् ! आप ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के ' मोटी ऋद्धिवाळो देव लोकान्तमा रहीने अलोकमा पोताना हाथने, यावत्-उरुने पसारवा समर्थ नथी' [उ०] हे गौतम! जीवोने (अनुगत एवा) आहारोपचित, शरीरोपचित अने कलेवरोपचित पुद्गलो होय छे, तथा पुद्गलोने आश्रयीनेज जीवोनो अने अजीवोनो (पुद्गलोनो) गतिपर्याय कहेवाय के. अलोकमां तो जीवो नथी. तेम पुद्गलो पण नथी माटे ते हेतुथी पूर्वोक्त देव यावत्| पसारवा समर्थ नथी. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.' ॥५८७ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १६ मा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
है १६ शतके
उशा दा॥२१॥
शतक १६. (उद्देशक ९.) कहिन्नं भंते ! यलिस्म बहरोपणिदस्स बहरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?, गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्म उत्तरेणं तिरियमसंखेने जहेव चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्सा ओगाहित्ता एत्थ ण चलिस्स वइरोयणि दस्स वड. २ रुयगिंदे नाम उप्पायपव्वए पन्नत्ते सत्तरस एकवीसे जोयणसए एवं पमाणं जहेव तिगिच्छकूडस्स पासायवडेंसगस्सवि तं चेव पमाणं सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं अहो तहेव नवरं यगिंदप्पभाई ३ सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहाणीए अन्नसिं च जाव रुयगिंदस्स णं उप्पायपव्वयस्स
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