Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 486
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kotbatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir बलिपीठ सुधी समजबूतथा उपपात, यावत्-आत्मरक्षको-ए बधुपूर्ववत् समजवू. विशेष ए के वैरोचनेन्द्र वैरोचन राजा एवा व्याख्याप्रज्ञप्तिः बलिनी स्थिति सागरोपम करतां कइंक अधिक कही छे. अने बाकी बधु ते संबंधे पूर्व प्रमाणेज जाणवू. यावत्-'वैरोचनेन्द्र पलि छे, ॥१४१२॥ हा वैरोचनेन्द्र बलि छ' त्या सुधी कहे. 'हे भगवन् ! ते एमज वे, हे भगवन् ! ते एमज के.' ॥ ५८८ ॥ भगवत सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १६ मा शतकमा नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. १६ शतके | उशा. शतक १६. (उद्देशक १०.) कति विहे गं भंते ! ओही पन्नत्ते?, गोयमा! दुविहा ओही प०, ओहीपदं निरवसेसं भाणियव्वं ॥ सेवं भंते।। सेवं भंते! जाव विहरति ॥ (सूत्रं ५८९) ॥ १६-१०॥ [प्र०] हे भगवन ! अवधिज्ञान केटला प्रकारे कयु छ ? [उ०] हे गौतम ! अवधिज्ञान के प्रकारे कर्तुं छे. अहिं 'प्रज्ञापना' ॐ सूत्रनुं तेत्रीसमु अवधिषद संपूर्ण कहे. हे भगवन् ! ते एमज , हे भमवन् ! ते एमज छे-एम कही यावद्-विहरे छे. ॥ ५८९ ॥ भगवत् सुधर्म स्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीउत्रना १६ मा शतकमां दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private And Personal

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