Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 471
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १६शतके व्याख्या उद्देशः६ ॥१३९७॥ *SARAKAR मंदर चूलिका उपर सिंहासनमा बेठेल पोताना आत्माने जोई तेओ जाग्या. जपणं समणं भगवं म० एगं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पा० जाव पडिबुद्ध तणं समणेणं भगवया महा. मोहणिले कम्मे मूलाओ उग्धापिए १ जन्नं समणे भ० म०पगं महं सुकिल्लजाय पडिबुद्धे तण्णं | समणे म.म. सुकन्झाणोवगए विहरति२ जण समणे भ०म० एग महं चित्तविचित्तजाव पडिबुद्धे तणं समणे भ. म. विचित्त ससमयपरसमइयं दुवालसंग गणिपिडगं आघवेति पनवेति परवेति सेति निदंसेति उवदसेति, तंजहा-आयारं सूयगडं जाव दिहिवायं ३, जपणं समणे भ० म० एणं महं दामदुगं सम्बरपणामयं सुविणे पासित्ताण पडिबुद्धे तण्णं समणे भ०म० दुविहं धम्म पन्नवेति, तं०-आगारधम्म वा अणागारधम्म वा ४, जपणं समणे भ० म० एणं महं सेयगोवरगं जाव पडिवुद्धे तपणे समणस्स भ० म० चाव्वण्णाइन्ने समणसंघे, तं०समणा समणीओ साविया सावियाओ५, जपणं समणे भ० म० एग महं पउमसरं जाव पडिबुद्धे तणं समणे जाव वीरे चउठिबहे देवे पनवेनि, तं०-भवावासी वाणमंतरे जोतिसिए वेमाणिए ६, जन्नं समणे भग०म० एग महं सागरं जाव पडिबुद्धे तन्नं समणेणं भगवया महावीरेणं अणादीए अणवदग्गे जाव संसारकतारे तिन्ने २७, जन्न समणे भगवं म० एग महंदिणयरंजाव पडिबुद्धे तन्नं समणस्स भ०म० अणंते अणुत्तरे [नि० नि० क. पिडि० केवल दस०] (जाव) समुप्पने ८, जपणं समणे जाव वीरे एग महं हरिवेरुलिय जाव पडिबु० तणं सम स्स भ० म० ओराला कित्तिवन्नसहसिलोया सदेवमणुयासुरे लोए परिभमंति-इति खलु समणे भगवं महा For Private And Personal

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