Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्याख्याप्रज्ञप्तिः
१४०४ ।।
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
शतक १६. (उद्देशक ७.)
तित्रिणं भंते! उनओगे पत्ते १, गोयमा ! दुविहे उपओगे पत्ते एवं जहा उपयोग पदं पद्मवणाए तहेब निरवसेसं भाणिगव्वं, पासणयापदं च निरवसेसं नेयव्वं । सेवं भंते 1 सेवं भंतेति ॥ (सूत्रं ५८३) ।। १६-७ ॥
[०] हे भगवन् ! केटला प्रकारनो उपयोग को है ? [उ०] हे गौतम ! उपयोग वे प्रकारनो को छे, जेम प्रज्ञापना सूत्रमांना उपयोग पदामां कहेवामां आच्युं छे तेम अहीं बधुं कहेतुं तेमज अहीं श्रीसम्मुं 'पश्यत्तापद' पण समग्र कहेतुं. 'हे भगवन् ! ते एमज से, हे भगवन् ! ते एमज . ॥ ५८३ ॥
भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १६ मा शतक्रमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
शतक १६. ( उद्देशक ८.)
किंमहालणं ते! लोए पन्नत्ते १, गोयमा ! महतिमहालए जहा बारसमसए तहेब जाव असंखेज्जाओ ओयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, लोपम्स णं भंते ! पुरच्छिमिले चरिमंते किं जीवा जीवदेसा जीवपपसा अ जीवा अजीवदेसा अजीव पएमा ?, गोगमा ! नो जीवा जीवदेसावि जीवपएसावि अजीवावि अजीब देसाव अजीव परसाव || जे जीवदेसा ते नियमं एर्गिदियदेसा अहवा एगिंदियदेसा य बेदियस्स य देसे एवं जहा
For Private And Personal
१६
उद्देशः७ ॥१४४॥

Page Navigation
1 ... 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524