Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 479
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दसमसए अग्गेधीदिसा तहेव नवरं देसेसु अणिदियाणं आइल्लविरहिओ। जे अरूधी अजीवा ते छबिहा, अ. व्याख्या ४ि१६ शतक |द्धासमयो नत्थि, सेसं सं चेव सव्वं निरवसेसं। लोगस्स णं भंते ! दाहिणिल्ले परिमंते किं जीवा ?, एवं चेव, 10 प्रशतिः उद्देश: एवं पञ्चतिमिल्लेवि, उत्तरिल्लेवि, लोगस्सणं भंते ! उवरिल्ले चरिमंते किं जीवा? पुच्छा, गोषमा! मो जीवा ॥१४०५॥ ४॥१४०५॥ जीवदेसावि जाव अजीवपएसावि । जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेमा य अणिदियदेसा प अहवा एगिदियदेसा य अणिदिय० दियस्स य देसे, अहवा एगिदियदेमा य अणिदियदेमा य बेंदियाण य देसा, एवं मजिझ ल्लविरहिओ जाव पंचिंदि०, जे जीवप्पएसा ते नियम एगिदियप्पएसा य अणिदियप्पएसा य अहवा एगिदियप्पएमा य अगिंदियप्पएमा प दियस्सप्पदेसा य अहवा एगिदियपएसा य अणिंदिगप्पएसा य बेइंदियाण य पएसा, एवं आदिल्लविरहिओ जाच पंचिंदियाणं, अजीवा जहा दसमसए तमाए तहेव निरवसेसं ॥ [प्र०] हे भगवन् ! लोक केटलो मोटो को छ ? [उ.] हे गौतम! लोक अत्यन्त मोटो कह्यो छे. जेम बारमा शतकमां कडं द्री छे तेम अहीं पण लोक संबंधी बधी हकीकत कहेवी, यावत्-ते लोकनो परीक्षेप-परिधि असंख्येय कोटाकोटी योजन . [प्र०] हे भगवन् ! लोकना पूर्व चरमांतमा (पूर्व बाजुना छेडाना अंते ) १ जीवो छ, २ जीवदेशो छे, ३ जीवप्रदेशो छ, ४ अजीवो छ, ५ | अजीवदेशो छ, ६ के अजीवप्रदेशो के ? [उ०] हे गौतम ! त्यां जीवो नथी, पण जीवदेशो छ, जीवप्रदेशो छ, अजीवो छ, अजी-15 वदेशो छ अने अजीवप्रदेशो पण छे. जे जीवदेशो के ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छ, अथवा एकेंद्रियना देशी अने अनिन्द्रियनो (एक) देश -इत्यादि अधुं दशमा शतकमां कहेल आयी दिशानी वक्तव्यता प्रमाणे कहे. विशेष ए के, देशोना विष. RAICRACMCANCE उऊck For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524