Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 461
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१३८७।।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कथन के छे ? [उ०] 'गंगदत्त' ! एम कही श्रमण भगवंत महावीरे ते गंगदच देवने आ प्रमाणे कछु के है गंगदत्त 1 हुं पण ए प्रमाणे कहुं छु ४, के परिणाम पामता वृद्धलो यावत्- 'अपरिणत' नथी पण 'परिणत' के अने ते अर्थ सत्य छे. त्यार पछी भ्रमण भगवंत महावीर पाथी ए वातने सांभळी अवधारी ते गंगद देव हर्षवाळो अने संतोषवाळो थई श्रमण भगवंत महावीरने वांदी नमी बहु दूर नहि अने बहु नजीक नहीं एवी रीते पासे बेसी सेओनी पर्युपासना करे थे. पछी श्रमण भगवत ! महावीरे ते गंगदत्त देवने अने ते मोटामां मोटी समाने धर्मकथा कही, यावत्-ते आराधक थयो. पछी ते गंगदत्त देव श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्मने सांभळी अवधारी हर्ष अने संतोषयुक्त थई उभो थयो, उभो थईने श्रमण भगवंत महावीर ने वांदी, नमी आ प्रमाणे बोल्यो के - [प्र० ] हे भगवंत ! हुं गंगदरा देव भवसिद्धिक छु के अभवसिद्धिक छु १ [उ०] जेम सूर्याभ देव संबन्धे का तेनी पेठे बधुं जाणवु यात्रत् ते गंगदत देव चत्रीय प्रकारना नाटक देखाडी ज्यांथी आग्यो हतो त्यां पाछो चाल्यो गयो. ॥ ५७६ ॥ संतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वग्रामी - गंगदत्तस्स णं भंते । देवस्स मा दिव्वा देवडी दिव्या देवजुत्ती जाव अणुपविट्ठा, गोयमा ! सरीरं गया सरीरं अणुष्पविट्ठा कूडागारसालादिहंतो जाय सरीरं अणुष्पविट्ठा। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महड्डिए जाव महेसक्खे ?, गंगदत्तणं भंते ! देवेणं सा दिव्या देवडी दिखा देवजुत्ती किण्णा लद्धा जाब गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्वा देवड्डी जाव अभिसमन्नागया ?, गोयमादी ! समणे भगवं महाबीरे भगवं गोयमं एवं वयासी - एवं खलु गोयमा ! लेणं कालेणं २ इहेब जंबुद्दीवे २ भारहे बासे हरिणापुरे नामं नगरे होत्था बनाओ, सहसंबवणे उज्जाणे वनओ, तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे गंगदत्ते नामं For Private And Personal १६ शतके उद्देशः ५ १३८७॥

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