Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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उदेश
दाते सुमंगल अनमार आतापना भूमियी उतरी तेजस समुद्घात करशे, तैजस समुद्घात करीमे, सात आठ पगला पाछा जइ घोडा, IN रथ अने सारथिसहित विमलवाहन राजाने भस्मराशिरूप करशे. [40] हे भगवन् ! सुमंगल अनगार घोडासहित, यावत्-विमलवा- IT हन राजाने भस्मराविरूप करीने [काळ करी] क्या बने, क्या उत्पन थशे? [उ.] हे गोतम ! सुमंगल अनगार विमलवाहन
P१३५१॥ राजाने घोडासहित यावत्-भस्मराशिरूप करीने घणा प्रकारना छह, अहम, दशम [चार उपवास], द्वादश भक्त [पांच उपवास]] यावत्-विचित्र तपकर्म बडे आरमाने भावित करता घणा वरस सुघी श्रमणपणाना पर्यायने पाळशे. पाळीने मासिक संलेखना बडे साठ भक्त अनशानपणे वीताबीने आलोचना अने प्रतिक्रमण करी समाधिने प्राप्त थई ऊर्ध्व लोकमां चन्द्र अने सूर्य, यावत-सो प्रैवेयक विमानावासने ओळंगी सर्वार्थसिद्ध महाविमानमां देवपणे उपजशे. त्या देवोनी जघन्य अने उत्कृष्टरहित एवी तेत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही थे. त्यां समंगल देवनी पण जघन्य अने उत्कृष्टरहित एवी तेत्रीश सागरोपमनी स्थिति इशे. ते सुमंगल देव देवलोकथी यावत्-भवना क्षय थवाथी महाविदेह क्षेत्रमा सिद्ध थशे, यावत सर्व दुःखोनो अन्त करशे. ॥ ५५९ ।।
विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहए जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छहिति कहिंदी उवजिहिति?, गोयमा! विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसतमाए पुढवीए उकोसकालद्विइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं उव्वहिता मच्छेस उववजिहिति, मे णं तत्थ सत्यवो वाहवकंतीए कालमासे कालं किचा दोचंपि अहे सत्तमाए पुरवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि मरगंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, सेणं तओऽणंतरं उब्वहिता वोचपि मच्छेसु उववजिहिति,
कन्य
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