Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 433
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अविराहियसामने कालमासे कालं ] किवा सणकुमारे कप्पे देवताए उववजिहिति, से णं तओहितो एवं जहा | | सणकुमारे लहाभलोए महामुके भाणए आरणे, से गं तओ जाव अविराहियसामने कालमासे कालं किया सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववजिहिति, सेणं तओहिंतो अणंतरं चयं चहत्ता महाविदेहे वासे जाई इमाई उदेश' कुलाई भवंतितं.-अड्डाइं जाव अपरिभ्याई, तहप्पगारेसु कुलेसु पुत्तत्ताए पञ्चायाहिति, एवं जहा उवबाइए दर 3॥१३५९॥ पहनवत्तव्यय सञ्चेव वत्तध्वया निरवसेसा भाणियच्या जाव केवल वरनाणदंसणे समुप्पजिहिति। त्यांची अन्तररहितपणे च्यवीने मनुष्यना देहने धारण करी मात्र घोधि-सम्यग्दर्शन पामशे. केवळ सम्यग्दर्शन पामी मुंड | थई गृहवासनो त्याग करी अनगारिता-दीक्षा ग्रहण करशे. त्या पण श्रामण्य दीक्षाने विराधी दक्षिण दिशाना असुरकुमार देवोमां देवपणे उत्पन थशे. त्यारपछी ते त्यांधी यावत-नीकळी मनुष्य शरीर प्राप्त करी-इत्यादि पूर्वोक्त कई यावत्-त्या पण श्रमणपणुं विगधी मरणसमये काळ करी दक्षिण निकायना नागकुमार देवोमां देवपणे उत्पन थशे हवे ते त्यां अन्तररहितपणे व्यवीइत्यादि ए पाठ बडे दक्षिण निकायना सुवर्णकुमारने विषे, ए प्रमाणे विद्युत्कुमारने विषे, एम यावत्--अग्निकुमार सिवाय दक्षिण निकायना स्तनितकुमारने विषे उत्पन थचे. यावत्-ते त्यांथी निकळी मनुष्य शरीर प्राप्त करणे, यावत्-श्रमणपणु विराधी ज्योतिषिक देवमा उत्पन्न पशे. हवे ते त्यांची अन्तररहितपणे व्यवीने पुन: मनुष्यशरीर प्राप्त करशे, यावत्-श्रमणपणु विराध्या सिवाय मरणसमये काळ ब्री सौधर्मदेवलोकने विष देवपणे उत्पन धो. ते त्यांची अन्तररहित स्थवीमे मनुष्यशरीर प्राप्त करणे, अने केवळ सम्यग्दर्शननो अनुभव करशे. त्या पण भमणपणुं विराध्या सिवाय मरणसमये काळ करी ईशानदेवलोकमां देवपणे उत्पच थशे. त्यांची GAAN For Private And Personal

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