Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir
मा१६ शक्के
उद्देशः५ ॥१३८३॥
संकोचवाने के पहोळां करवाने, ६ स्थान शय्या के निषद्या-खाध्यायभूमिने भोगववाने, ७ विकुर्ववाने अने ८ परिचारणा-विषयोव्याख्या
पभोग करवाने समर्थ छ ? [उ०] हा यावत्-समर्थ छे. ते देवेन्द्र देवराज पूर्वोक्त संक्षिप्त आठ प्रश्नो पूछी अने उत्सुकता-उतावळ प्रमाप्तिः । ॥१३८३०
पूर्वक भगवंत महावीरने वांदी तेज दिव्य विमान उपर चढी ज्यांथी आव्यो हतो त्यां ते पाछो चाल्यो गयो. ॥ ५७४ ॥
भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमसति २ एवं क्यासी-अन्नदा णं भंते ! सके देविंदे है देवराया देवाणुप्पियं वदति नमसति सक्कारेति जाव पज्जुबासति, किण्हं भंते ! अज सक्के देविंदे देवराया देवागुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छह २ संभंतियबंदणएणं वंदति णमंमति २ जाव पडिगए ?. गोय.
मादि समणे म. भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं २ महासुके कप्पे महासामाणे विमाणे हैदो देवा महड्डिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना, तं०-मायिमिच्छदिहिउववन्नए य अमायि.
सम्मदिहिउववन्नए य, तएणं से माथिमिच्छादिहिउववन्नए देवे तं अमायिसम्मदिहिउववन्नगं देवं एवं वयासीपरिणममाणा पोग्गला नो परिणया अपरिणया, परिणमंतीति पोग्गला नो परिणया अपरिणया, तए ण से अमायिसम्मदिट्ठीउववन्नए देवे तं मायिमिच्छदिट्ठीउववन्नगं देवं एवं वयासी-परिणममाणा पोग्गला परिणया नो अपरिणया, परिणमंतीति पोग्गला परिणया नो अपरिणया,तं मायिमिच्छदिट्ठीउबवन्नगं एवं पडिहणइ २ ओहिं पउंजइ ओहिं २ ममं ओहिणा आभोएइ ममं २ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था-एवं खलु समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे २ जेणेव भारहे वासे जेणेव उल्लुयतीरे नगरे एगजंबूण चेहए अहापडिरूवं जाव विहरति, त सेयं
CHECRECRUGALACHECRUA
GESG
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524