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व्याख्या प्रति
॥१३७३॥
भासति, से तेणढणं जाव भासति, सके णं भंते ! देविंदे देवराया किं भवसिद्धीए अभवसि सम्मविट्ठीए एवं | जहा मोउद्देसए सर्णकुमारो जाव नो अचरिमे ॥ (सूत्रं ५६९)।
१६ शतके [प.] हे भगवन् ! शक देवेन्द्र देवराज झुं सत्यवादी के के मिथ्यावादी छे ? [उ०] हे गौतम ! ते सत्यवादी छे पण मिथ्या-14
| उद्देश २ हावादी नथी. [प्र.] हे भगवन् ! शक देवेन्द्र देवराज सत्यभाषा बोले , मृषा भाषा बोले छे, सत्यमृषा भाषा बोले के के असत्या
| मृषा भाषा बोले के ? [उ.] हे गौतम ! ते सत्व भाषा बोले छे, यावत्-असत्यामृषा भाषा पण बोले छे. [4.] हे भगवन् ! शक | देवेन्द्र देवराज सावध (पापयुक्त) भाषा बोले के निरवध (पापरहित) भाषा बोले? [उ०] हे गौतम! ते सावध अने निस्वद्य बने माषा बोले. [प्र०] हे मगवन् ! तेनुं हुं कारण के शक सावध अने निरवद्य ए बने भाषा चोले ? [उ.] हे गौतम । शक देवेंद्र देवराज ज्यारे सूक्ष्म काय-हस्त अथवा वस्त्र वडे मुख ढाक्या बिना बोले त्यारे ते सावध भाषा बोले छे अने मुख ढांकीने बोले त्यारे ते निरवद्य भाषा बोले छे, माटे ते हेतुथी ते शक्र सावध अने निरवध पन्ने भाषा बोले छे. [म०] हे भगवन् ! ते शक्र देवेन्द्र देवराज मत्रसिद्धिक छे, अमरसिद्धिक छ, सम्पारष्टि छ, [के मिथ्यारष्टि छे !][उ.] जेम श्रीजा शतकना प्रथम उद्देशकमा सनस्कुमार माटे का छे वेम अहिं पण जाणवू. अने ते यावद,-'अचरम नथी' ए पाठ सुधी कडेचं. ॥ ५६९ ॥
जीवाणं भंते ! किं चेयकता कम्मा कति अचेयकडा कम्मा कलंति?, गोयमा जीवाणं चेयकडा कम्मा कञ्चति नो अचेयकता कम्मा कजंति, से केण. भंसे! एवं बुखा जाव कति !, गोयमा! जीवाणं आहारोब-- चिया पोग्गला बौदिचिया पोग्गला कलेवरचिया पोग्गला,महा २ णं से पोग्गला परिणमंति नथि अचेयकमा
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