Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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सा
१५ शतके उदेश
मजाच छउमत्थे चेव कालगए सम० भ० महा० जिणे जिणप्प जाब विहरह सवहपडिमोक्खणगं करेंति स०२ व्याख्या
दोचंपि पूयासकारथिरीकरणट्टयाए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वामाओ पादाओ सुंषं मुयंति सु०२ हालाहला. कुं. कुं० दुवारययणाई अवगुणति अ०२ गोसालस्स मंस्खलिपुत्तस्स सरीरगं सुरभिणा गंधोदएणं पहाणेति तं | | चेव जाव महया इढिसकारसमुदएणं गोसालस्स मखलिपुत्तस्स सरीरस्स नीहरणं करेंति ॥ (सूत्रं ५५६)॥
त्यारपछी आजीविक स्थविरोए मखलिपुत्र गोशालकने काळधर्म पामेल जाथीने हालाहला कुंभारणना कुंभकारापणना द्वार बन्ध कर्या. वारणा बन्ध करीने हालाइला कुंमारणना कुंभकारापणना बरोबर मध्यभागमा श्रावस्ती नगरीने आळेखीने मंखलिपुत्र
गोशालकना शरीरने डावे पगे दोरडावडे बांधीने त्रणवार मुखमा थुकीने आवस्ती नगरीना शृंगाटकना आकारवाळा, पावत्-राजMमार्गने विषे घसडता धीमा धीमा अन्दथी उद्घोषणा करता करता था प्रमाणे बोल्या-“हे देवानुप्रियो । मंखलिपुत्र-गोशालक
जिन नथी, पण जिनप्रलापी थईने यावत्-वियों छे, आश्रमणघातक मंखलिपुत्र गोशालक यावत् छाखवस्थामाज काळधर्म पाम्यो के. श्रमण भगवान महावीर जिन, अने जिनप्रलापी थईने यावत्-विहरे छे," ए प्रमाणे तेओ शपथथी छटा थाय छ, अने बीजीवार तेनी पूजा अने सत्कारने स्थिर करवामाटे मंखलिपुत्र गोशालकना डावा पगथी दोरडं छोडी नांखे, छोडी नांखी हालाहला कुंमारणना कुंभकारापणना द्वार उघाडे छे, उघाडीने मंखलिपुत्र गोशालकना शरीरने सुगन्धी गन्धोदकवडे स्नान करावे छे-इत्यादि पूर्वोक्त कहे, यावत्-अत्यन्त मोटी ऋद्धि अने लत्कारना समुदायधी मंखलिपुत्र गोशालकना शरीरने बहार काढे ३.॥५५६ ॥ तए ण सम भ० म० अन्नपा कदापि सावत्थीमो नगरीओ कोढयाओ चेइयाओ परिनिक्लमति परि.२
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