Book Title: Bhagvati Sutram Part 05
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या प्रज्ञप्ति
HERAN नोकळी ज्या माणका यावत् पर्युपासना को ताने आचा
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www.kobatirth.org |महा. बंद. न.२ समणस्स भ० महा. अंतियाओ सालकोट्ठयाओ चेहयाओ पडिनिक्खमति प०२ अतु| रियजाव जेणेव में दियगामे नगरे तेणेव उवा०२ में डियगाम नगरं मझमझेणं जेणेव रेवतीए गाहावाणीए
१५ शतके गिहे तेणेव उवा०२ रेवतीए गाहावतिणीए गिहं अणुप्पविद्वे, तए
Pउद्देश सा रेवती गाहावतिणी सीहं अणगारं
६१३३६॥ एजमाण पासति पा० २ हद्वतुट्ठ खिप्पामेव आसणाओ अन्भुद्वेद २ सीह अणगारं सत्ता पयाई अणुगच्छद, स.२तिक्खुत्तो आ. २ वंदति न. २ एवं बयासी-संदिसंतुणं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं,
त्यारे ते सिंह अनगार श्रमण निर्ग्रन्थोनी साथे मालुकावनथी नीकळी ज्यां साणकोष्ठक चैत्य छ, अने ज्या श्रमण भगवंत महावीर के त्यां आवे , त्यां आवी श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार प्रदक्षिणा करे, यावत् पर्युपासना करे के. श्रमण भगवंत महावीरे 'हे सिंह!" ए प्रमाणे सिंह अनगारने बोलावी आ प्रमाणे कधु-'हे सिंह! खरेखर ध्यानान्तरिकामा वर्तता तने आवा प्रकारनो आ संकल्प थयो हतो, यावत् तें अत्यन्त रुदन कयु हतुं ? हे सिंह ! खरेखर आ वात सत्य के ? हा, सत्य छे. हे सिंह ! हुं नक्की मंखलिपुत्र गोशालकना तपना तेजी पराभव पामी छ मासने अन्ते यावत् काळ करीश नहि, हुं चीजा सोळ वरस जिनपणे | गन्धहस्तिनी पेठे विचरीश. ते माटे हे सिंह! तुं में ढिकग्राम नगरमा रेवती गृहपत्नीना घेर जा, त्या रेवती गृहपत्नीए मारे माटे ट्रा कोहळाना फळो संस्कार करी तैयार कयाँ छ, तेनुं मारे प्रयोजन नथी, परन्तु तेथी बीजो गइकाले करेलो मार्जारकृत-मारिनामे
वायुने शान्त करनार बीजोरापाक ने, तेने लाव, एनुं मारे प्रयोजन के. त्यारपछी श्रमण भगवंत महावीरे ए प्रमाणे कयुएटले | ते सिंह अनगार प्रसम्म अने संतुष्ट, यावद प्रफुल्लितहृदयवाला थई श्रमण भगवंत महावीरने बंदन अने नमस्कार करी त्वरा, चपलता
SIDHAAR
सिंह " ए प्रमाणे सिंह अनात महावीरने वणवार प्रदक्षिणालाणकोष्ठक चैत्य छे, अने ज्या
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