________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
१६ शतके
व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१४०३॥
॥१४.३॥
RECE-CROCOCCARE
करे, कोई स्त्री के पुरुष स्वप्नने अन्ते तरंगो अने कल्लोलोथी व्याप्त एक मोटा सागरने जुए अने तरे, तथा पोते तेने तरी गयो के एम पोताने मान, पछी शीघ्र जागे तो तेज भवमां यावत्-सर्व दुःखोनो नाश करे. कोई स्त्री के पुरुष खप्नने अन्ते सर्व रत्नमय बनेलं एक मोटुं भवन जुए अने तेमा प्रवेशे, पोते तेमा प्रवेश कयों के एम पोताने माने, पछी शीघ्र जागे तो तेज भवमा यावत्-सर्व दुःखनो नाश करे. कोई स्त्री के पुरुष स्वप्नने अन्ते सर्व रत्नमय एक मोटुं विमान जुए, तेना उपर चढे अने पोते ते उपर चढयो के एम पोताने माने. त्यारपछी शीघ्र जागे तो तेज भवमां यावत्-सर्व दुःखनो नाश करे. ॥ ५८१ ॥
अह भंते ! कोहपुडाण वा जाव केयतीपुडाण वा अणुवायंसि उम्भिज्जमाणाण वा जाव ठाणाओ वा ठाणं संकामिजमाणाणं किं कोहे वाति जाव केयई वाइ, गोयमा! नो कोटे वाति जाव नो केयई वाती घाणसहगया पोग्गला वाति । सेवं भंते २ त्ति ( सूत्रं ५८२ ) ॥ १६-६॥
[प्र.] हे भगवन् ! कोष्ठपुटो, यावत्-केतकीपुटो यावत्-एक स्थानथी स्थानान्तरे लई जवाता होय त्यारे पवनानुसारे जे (मनो गंध) वाय छे तो ते कोष्ठ वाय छे के यावत्-केतकी वाय छे ? [उ०] हे गौतम! कोष्ठपुटो के केतकी पुटो वाता नथी, पण मंधना जे पुद्गलो छे ते वाय छे. 'हे भगवन् ! ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमज थे.' ॥ ५८२॥
भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १६ मा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
छHASIRKAकरन
For Private And Personal