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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ।।५८४॥
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छे तेम चतुष्पद, उरपरिसर्प, भुनपरिसर्प अने खेचरोमां पण चार आलापक कहेवा, जे पुद्गलो संमूर्छिममनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत छे, ते औदारिक, तैजस अने कार्मणशरीरप्रयोगपरिणत हे ए प्रमाणे गर्भज अपर्याप्ता जाणवा, पर्याप्ता पण एमज जाणवा. परन्तु ८ शतके विशेष ए के तेओने पांच शरीर कहेवा. जेम नैरयिको संबन्धे कडं, तेम अपर्याप्त असुरकुमारभवनवासि देवो संबंन्धे पण जाणवू, है उद्देशः १ तेम पर्याप्ता संबन्धे पण जाणवू ए प्रकारे ए बे भेदवडे यावत् स्तनितकुमारो पण जाणवा. ए प्रमाणे पिशाचो अने यावत् गांवों ॥५८४॥ जाणवा. चंद्रो यावत् तारा विमानो, सौधर्मकल्प यावत् अच्युतकल्प, नीचेनी त्रिकमां नीचेना ग्रैवेयक यावत् उपरनी त्रिकमां | उपरना ग्रैवेयक अने विजयअनुत्तरौपपातिक यावत् सर्वाथसिद्ध. अनुत्तरौपपातिकना प्रत्येके वबे भेद कहेवा; यावत् जे पुद्गलो अपर्यात सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिक यावत् [पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक] प्रयोगपरिणत छे, ते वैक्रिय, तैजस अने कार्मण-2 शरीरप्रयोगपरिणत छे. ए प्रमाणे त्रण दंडक कह्या.
जे अपजत्ता सुहुमपुढविकाइयएगिंदियपयोगपरिणता ते फासिंदियपयोगपरिणया, जे पजत्ता सुहुमपुढविकाइया एवं चेव, जे अपज्जत्ता बादरपुढविक्काइया एवं चेव, एवं पजत्तगावि, एवं चउक्कएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया, जे अपज्जत्ता बेइंदियपयोगपरिणया ते जिभिदियफासिंदियपयोगपरिणया, जे पजत्ता बेइंदिया एवं चेव, एवं जाव चउरिंदिया, नवरं एकेक इंदियं वड्ढेयव्वं जाव अपजत्ता रयणप्पभापुढविनेरइयपंचिंदियपयोगपरिणया ते सोइंदियचक्खिदियघाणिदियजिभिदियफासिंदियपयोगपरिणया एवं पज्जत्तगावि, एवं सब्वे भाणियब्वा, तिरिक्खजोणियमणुस्सदेवा जाव जे
KATHA
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