Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ [६] महाभारतके लगभग २ हजार वर्ष बाद २३ वे तीर्थंकर श्री “पार्श्वनाथ अवतरित हुये। उनके सदुपदेशसे सैद्धान्तिक विस्मृतियों तथा आचारात्मक शिथिलताओंका बहुत कुछ संशोधन हुआ, परन्तु उनसे पूर्व चैदिक आचारांगमें इतनी पापात्मक विषमता और मिथ्यात्वात्मक उच्छृखंलता आ गई थी कि वह भगवानके आदर्शीय तप त्याग तथा सर्व हितकारी धर्मोपदेशसे भी तत्कालीन साम्प्रदायिक भेदके कारण पूर्णतः निर्मूल न हो सकी, बल्कि भगवानके निर्वाणलाभके बाद उपस्थित वाम मार्गका और भी अधिक वेगसे उत्कर्षण हुआ। ___भगवान पार्श्वनाथके मुक्तिलाभसे २५० वर्ष पीछे श्री महावीरस्वामी २४ वें तथा अन्तिम तीर्थकरका जन्म हुआ, जिन्होंने युवावस्थाको प्राप्त होकर जब देशवासियोंकी हिंसामय कुकृतियों, व्यभिचारात्मक लीलाओं और दुर्व्यसनपूर्ण प्रवृत्तियोंको देखा तो वे सहसा सिहर उठे और उन्होंने अपने राजसी सुखसम्पन्न जीवनको परित्याग कर सन्यासयोग धारण कर लिया । १२ वर्ष कठिन तपस्या करके जत्र पूर्ण आत्मवल और केवलज्ञान प्राप्त कर लिया तो उन्होंने अहिंसा धर्मका सर्वत्र सिंहनाद किया और स्वयं आदर्श रूप उपस्थित होकर वास्तविक मोक्षमार्गका प्रतिपादन किया। उनके अपूर्व आत्मबल, निस्वार्थ जीवन, और कल्याणकारी उपदेशसे भारतीय जनता अत्यंत प्रभावित हुई. देशवासियोंको अपने भावी जीवनके सुधारका मार्ग मिल गया, प्रभुने प्राणी मात्रके लिये. धर्म द्वार खोल दिया, सभी भव्य आत्माओंको समता रसका.पान्न करा कर स्वतंत्रताका बीज मंत्र.सिखा दिया।

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 101