Book Title: Bhagavana Kundakundacharya
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 7
________________ ॐ दो शब्द। के उल्लेखानुसार मसिकलाका आविष्कार आदि तीर्थकर श्री ऋपभदेवजी द्वारा कर्मभूमिकी आदिमें ही हो चुका था, जिसका थोड़ा बहुत व्यवहृत होना भी स्वाभाविक है, परन्तु प्राचीन आख्यायिकाओंको विचारनेसे जान पड़ता है कि महाभारतसे पूर्व जिसे लगभग ५ हजार वर्ष हुये, चतुर्थकालमें सत्संयमी, व्य तपस्वी, और तत्वज्ञानियोंका बाहुल्य होनेसे जनताको धर्मोपदेश सुनने और तदनुकूल चारित्र पालन करनेकी प्रति समय यथच्छित सुविधा प्राप्त थी। इसलिये तात्विक सिद्धान्त और चारित्रात्मक आगमको पुस्तकारूढ़ करनेकी उस समय कोई आवश्यक्ता प्रतीत नहीं हुई। अत: समस्त सैद्धान्तिक ज्ञान विद्वानों एवं धर्मरसिकोंके कंठाग्र ही रहा । ___ जब इस महा समरमें भारतके बलशाली सुभटों और शस्त्र-विज्ञानियोंका प्रायः अन्त हो गया तो देशकी जगद्विख्यात संस्कृति, सभ्यता, उदारता, वीरता तथा धार्मिकताकी भी क्षति होगई। इन मानवीय सद्गुणों के अभावमें देशवासियोंकी जो स्थिति होना चाहिये थी वही हुई। विद्वानोंमें स्वार्थपरता, तपस्वियोंमें शिथिलता और साधारण जनतामें विलासताका संस्कार उत्पन्न होकर प्रतिदिन बढ़ने लगा, वाममार्गकी स्थापना हो गई, अहिंसाप्रेमी और सदाचारी देशवासी आमिषभोजी, सुरापानी तथा व्यभिचारी होगये, और कुलगुरुओंने भी इन पापात्मक क्रियाओं पर धर्मकी छाप लगा दी।

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