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बड़े ही अन्धकार में है । इस समय जो कुछ भी इतिहास तैयार करने की सामग्री हमारे सामने मौजूद है यदि इधर उधर से संग्रह करके उस समय के इतिहास की रचना की जावे तो भी धर्म सम्बन्धी इतिहास की सामग्री का तो हमारे पास भाव सा ही है । इस लिये गुप्तकाल के पूर्ववर्ती कई शताब्दियों का धर्म विषयक इतिहास रचने का प्रयास करना कठिन अवश्य है । तथापि उस समय पूर्वोक्त धर्म संप्रदाय बंगाल में अविराम प्रचार पा रहे थे इस विषय में किंचितमात्र भी संदेह नहीं है ।
वैष्णव धर्म का प्राचीन नाम भागवत धर्म था । इस धर्म की उत्पत्ति अति प्राचीन काल में हुई थी । ईसा से पूर्व चौथी शताब्दी में ग्रीक दूत मेधात्थनिस ने मथुरा के प्रदेश में इसी धर्म का विशेष प्रभाव पाया था। ईसा के पूर्व दूसरी शताब्दी में तक्षशिला के ग्रीक राजा (Antialcidas) पंचम शुगराज ने भागभद्र की विदिशा स्थित राज सभा में हेल्युडोरास नामक दूत को भेजा था । इसी यवन (अर्थात् ग्रीक) दूत ने भागवत धर्म ग्रहण किया था । इस परम भागवत यवन हेल्युडोरास के प्रसंग से उत्तरवर्ती काल में परम वैष्णव यवन हरिदास की कथा भी स्वतः है । हम पहले लिख चुके हैं कि मगध के गुप्तसम्राट सभी भागवत धर्मानुयायी थे । ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी से ईसा की चतुर्थ शताब्दी तक पुष्करणाधिपति चन्द्रवर्मन चक्रस्वामी का उपासक था । बंगाल में भागवत अथवा वैष्णव धर्म का यही प्रथम प्रमाण है ।
स्मरण हो जाती