Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 88
________________ ७५ study of the inscriptions and the images supported by some excavations in well identified area of jaina culture will no doubt throw a good deal of light on the history of culture in this part of the country extending over two thousand years." अर्थात् — कई जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों के सिंहासनों पर लेख खुदे हुए पाये जाते हैं । उनको न तो अभी तक पढ़ा ही गया है और न उन का पर्यालोचन ही किया गया है । यदि इन लेखों का वाचन किया जावे तो इस क्षेत्र के दो हज़ार वर्ष पुराने जैन सभ्यता और इतिहास प्रकाश में आयेंगे । इतने विवेचन के पश्चात् हम इस निर्णय पर आते हैं कि :१. जैन तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियां श्व ेतांबर, दिगम्बर दोनों संप्रदायों को मान्य हैं । २. मथुरा के कंकाली टीले से तथा बंगालदेश से प्राप्त जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां "श्री कल्पसूत्र" में जिन श्व ेतांबर जैन मुनियों के गणों, कुलों और शाखाओं का उल्लेख है उन्हीं की शिष्य परम्परा ने प्रतिष्ठा (स्थापना) करवाई थी । इस लिये ये सब श्व ेताम्बर जैनों की मूर्तियां है । ३. दो हजार वर्षं प्राचीन जैन मूर्तियों पर खुदे हुए लेखो से ज्ञात होता है कि उस समय श्व ेताम्बर जैनधर्म का इन देशों में सर्वत्र प्रसार था । और उस समय के राजा, महाराजा तथा उनके मंत्री आदि भी इसी प्राचीन जैनधर्म को मानते थे तथा उसका आदर भी करते थे । ४. इस से यह भी स्वतः सिद्ध हो जाता है कि दिगम्बरों की यह मान्यता कि “व तांबर संप्रदाय अर्वाचीन है और विक्रम संवत्

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