Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 94
________________ ७६ अवस्था (दोनों अवस्थाओं) में ध्यानस्थ हैं। उन के शरीर पर मुकुट, कुंडल, मालाएं, कंकन इत्यादि अलंकार खुदे हुए हैं । तथा अनेक स्थानों में ऐसी मूर्तियां इधर उधर पड़ी हुई भी मिलती है । ई. सन् १९३० में मैं ने एक ऐमी ही जीवतस्वामी की प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की पद्मासनानीन पाषाण प्रतिमा को अजमेर नगर के इन्द्रकोट में मुसलमानों की "ढाई दिन का झोंपड़ा" नामक मस्जिद में एक वृक्ष के नीचे रखी देखी थी । ई० सन् १९३४-३५ में विहार के राजग्रही नगर के एक पर्वत पर भी मैं ने एक ऐसी ही मूर्ति देखी थी जो कि सरकार पुरातत्व विभाग ने एक प्राचीन जैनमन्दिर के ध्वंसावशेष को खोदवाने से अनेक अन्य जैनमतियों के साथ प्राप्त की थी। एक ऐसी ही जैन तीर्थकर की अति प्राचीन खंडित धातु मूर्ति अकोटा के समीप पुरातत्व अन्वेषकों को प्राप्त हुई है जो कि बड़ौदा म्यूजियम में सुरक्षित है : ___ यह प्रतिमा धातु से निर्मित जिस में तीर्थंकर के शरीर पर मुकुट, कुंडल, तथा अन्य भी अनेक प्रकार के अलंकार अंकित हैं कायोत्सर्ग मुद्रा में है। खेद है कि इस प्रतिमा के नीचे का भाग खंडित हो जाने से इस पर अंकित लेख नष्ट हो चुका है। परन्तु फिर भी कला की दृष्टि से पुरातत्वान्वेषकों का मत है कि यह मूर्ति ईसा से पूर्व काल की है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि महावीर की गृहस्थावस्था के समय की चन्दन की मूर्ति का वर्णन कल्पना नहीं परन्तु विश्वास पात्र है । ( देखें चित्र नं०६) इतने विवेचन के बाद हम इस निर्णय पर आते हैं कि :१. श्वेतांबर जैन संप्रदाय अति प्राचीन काल से तीर्थकर।

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