Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 86
________________ हमारी यह भी धारणा है कि कलिंगदेश में खंडगिरि, उदयगिरि में महाराज खारवेल द्वारा निर्मित जैन गुफ़ाएं तथा बंगाल, बिहार और उड़ीसा से प्राप्त जैन तीर्थंकरों के मन्दिर और मूर्तियां प्रायः उन जैन श्वेताम्बर आचार्यों द्वारा स्थापित किये गये होने चाहियें जिन के गणों, कुलों और शाखाओं का “कल्पसूत्र" में वर्णन आता है । 'बंगाल का आदि धर्म” नामक लेख में हम देख चुके हैं कि बंगालदेश में “निग्रंथों की चार शाखायें१-ताम्रलिप्तिका, २-कोटिवर्षिया, ३-पौंड्रवनिया, ४–दासी खटिया थीं। श्री कल्पसूत्र में इन का उल्लेख इस प्रकार है : "थेरस्स णं अज्जभद्दबाहुरस पाईणसगोत्तस्स इमे चत्तारि थेरा अंतेवासी. अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तंजहा १-थेरे गोदासे, २-थेरे अग्गिदत्ते, ३-थेरे जराणदत्ते ४-थेरे सोमदत्ते कासवगुत्तेणं । थेरेहिंतो गोदासेहितो कासव गुत्तेहिंतो इत्थणं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्सएं इमाओ चत्तारि साहाओ एवमाहिजंति, तंजहातामलित्तित्रा, कोडिवरिसिया, पोंडवद्धणिया. दासीखबडिया” । (कल्पसूत्र व्या० ८ पन्ना :५५-५६ आत्मानन्द जैन सभा भावनगर) अर्थात्-जैनाचार्य भद्रबाहु स्वामी के चार शिष्य थे। गोदास, अग्निदत्त, जिनदत्त, सोमदत्त । स्थविर गोदास से गोदास नाम का गण निकला तथा इस गण में से ताम्रलिप्तिका, कोटिवर्षिया, पौंड्रवर्धनिया और दासी खटिया ये चार शाखायें निकली । ... भद्रबाहु स्वामी सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन थे । उन के शिष्य गोदास के नाम से गोदास गण को स्थापना हो कर उस

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