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कारों ने इन का समय ईसा की प्रथम शताब्दी का आंका है। किन्तु कुछ लेख इन मूर्तियों पर ऐसे भी पाये गये हैं जो इन राजाओं के राज्यकाल से भी बहुत पहले के हैं :प्रथम लेख :
__ "सिद्ध सं० २० ग्री० १-दि० २५ कोटियतो गणतो, वाणियतो कुलतो, वयरीतो साखातो, सिरिकातो भत्तितो, वाचकस्य आर्य संघ सिंहस्य निवर्तनं दत्तिलस्य.... ... ...वि.... ... ...लस्य कोडू बिणिय जयवालस्य, देवदासस्य नागदिन्नस्य च नागदिन्नाये च मातु सराविकाये दिएणाए दाणं ।ई। वर्धमान प्रतिमा ॥"
अर्थ :-विजय ! संवत् २० उष्णकाल का पहला महीना, मिति २५ को कौटिक-गण, वाणिज-कुल, वरि शाखा, सिरिका विभाग के वाचक आर्य संघ सिंह की निर्वर्तन (प्रतिष्ठित) है । श्री वर्धमान (प्रभु) की (यह) प्रतिमा दत्तिल की बेटी बी...... ला की स्त्री, जयपाल, देवदास, तथा नागदिन्न (नागदत्त) की माता नागदिन्ना श्राविका ने अर्पित की।
आर्किबालोजीकल रिपोर्ट में इस लेख की नकल के नीचे सर कनिंघम ने एक नोट भी लिखा है जिस का अर्थ यह है कि यह लेख जो कि संवत् २८ ग्रीष्म ऋतु का प्रथम महीना मिति २५ का है इस में वर्णन है कि श्री वर्धमान की प्रतिमा भेंट की। यह प्रतिमा नग्न है। इस में कोई सन्देह नहीं है कि यह जैनों के चौवीसवें तीर्थंकर श्री वर्धमान अथवा महावीर का प्रतीक है । यह मूर्ति ई० पू० वर्ष ३७ की है। अर्थात् दो हज़ार वर्ष प्राचीन है।
* Alaxander Cunningham C. S. I. ने Archeological Report Vol. III Page 31 में plate