Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 83
________________ ७२ तेईस तीर्थंकरों सहित “श्वेतांबर जैनों को मान्यता के अनुकूल होने से श्वेतांबरों की है । परन्तु दिगम्बरों की मान्यता के प्रतिकूल होने से दिगम्बरां की कदापि नहीं हो सकती । अतः प्रतिमा नग्न है मात्र इसी कारण से दिगम्बरों की प्रतिमा कह देना न्याय संगत नहीं है । मथुरा के कंकाली टीले से प्राप्त नग्न तीर्थंकरों को मूर्तियां के लेखों से तो हमारे इन विचारों को अत्यन्त पुष्टि मिलती ही है । परन्तु इस बात को अधिक स्पष्ट करने के लिये हम श्री ऋषभनाथ सहित दो तीर्थंकरों की एक और नग्न मूर्ति का परिचय देना चाहते हैं । यह प्रतिमा देवगढ़ के किले में जैन मन्दिर में है इस प्रतिमा के बीचोबीच श्री ऋषभनाथ की पद्मासन में बैठी हुई मूर्ति है तथा इस के दोनों तरफ दो तीर्थंकरों की नग्न खड़ी ध्यानस्थ अवस्था की मू हैं । इन के नीचे दो श्वेतांबर जैन साधुओं की मूर्तियाँ अंकित हैं । बीच में स्थापनाचार्य है इस के एक तरफ़ साधु के हाथ में मुखवस्त्रिका है तथा दूसरी तरफ़ एक साधु मुंहपत्ति का पड़िलेहन करता हुआ दिखाई दे रहा है । (देखें चित्र नं० ३) 1 क्योंकि दिगम्बर साधु अपने पास मुखवस्त्रिका बिल्कुल नहीं रखते थे और आज कल भी जो दिगम्बर साधु मौजूद हैं उनके पास भी मुखवस्त्रिका नहीं होती । इस लिये इस में सन्देह को कोई स्थान नहीं रह जाता कि यह नग्न मूर्ति भी श्व ेतांबर जैनों की ही है। तथा श्व ेतांबर आचार्य द्वारा ही प्रतिष्ठा करायी गयी है ।

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