Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ लोच की थी। किसी भी तीर्थंकर के सिर पर बिल्कुल बाल नहीं थे। उसका वर्णन इस प्रकार है : ततः पूर्वमुखं स्थित्वा कृतसिद्ध नमस्क्रियः । केशानलुचदाबद्ध पल्य ङ्कः पंचमुष्टिकम् ॥ निलुच्य बहुमोहागवल्लरीः केशवल्लरीः। जातरूपध रो धीरो जैनी दीक्षामुपाददे । (दिगम्बर जिनसेनाचार्य कृत महापुराण-पर्व १७ श्लोक २००-२०१) अर्थात्- “तदनन्तर भगवान (ऋषभदेव) पूर्व दिशा की ओर मुह कर पद्मासन से विराजमान हुए और उन्होंने पंचमुष्टि केशलोच किया । धीर भगवान् ने मोहनीय कर्म की मुख्यलताओं के समान बहुत सी केश रूपी लताओं को लोच कर यथाजात अवस्था को धारण कर जिन दीक्षा ग्रहण की।” हम लिख चुके हैं कि श्वेतांबर जैनों को तीर्थंकरों की नग्न मूर्तियां वैसे ही मान्य हैं जैसे कि अनग्न मूर्तियां इस की पुष्टि के लिए एक प्रमाण और देते हैं । श्री कल्पसूत्र में वर्णन है कि:"प्रथमांतिम जिनयोः शक्रोपनीतं देवदृष्यापगमे सर्वदा अचेलकत्वम् ।" (कल्पसूत्र सुबोधिका व्या० १ पृ. १) चतुर्विशतेरपि तेषां (जिनानां) देवेन्द्रोपनीतं देवदूष्यापगमे तदभावादेव अचेलतत्वम् ।” (कल्पसूत्र किरणावली व्या० १ पृ० १) अर्थात्-तीर्थकर प्रभु जब दीक्षा ग्रहण करते हैं तब शक्रन्द्र उनको देवदुष्य वस्त्र देता है। "वह देवदूष्य वस्त्र प्रथम और अंतिम जिनेश्वर का गिर जाने से ये सर्वदा नग्न रहे । तथा "चौबोस तीर्थंकरों को इन्द्र द्वारा दिया हुआ देवदूष्यवस्त्र गिर जाने से वस्त्र के अभाव से नग्न रहे ।" (देखें चित्र नं० २)

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104