Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 52
________________ ४१ ....... . लौट आये थे (जैसा कि बोधायन से ज्ञात होता है) एवं किसी किसी ने तो इन सब प्रदेशों में स्थाई रूप से वसति (निवास स्थान) स्थापित कर ली थीं। किन्तु यह बात तो निश्चित ही है कि ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी से छठी शताब्दी तक आर्यों ने यदि बंगालदेश में प्रवेश किया भी हो तो भी उनकी संख्या और शक्ति इतनी नगण्य थी कि उस समय आर्य सभ्यता और धर्म ने बंगालदेश में विशेष रूप से प्रसार पाया हो ऐसी धारणा नहीं की जा सकती। वस्तुतः ई० पू० छठी शताब्दी तक बंगालदेश में वैदिकधर्म और सभ्यता ने प्रवेश किया हो, इस बात की पुष्टि के लिये बौदिक साहित्य में कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। तथापि ध्यान में रखने की बात है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में ही हयांकराज बिम्बसार, गौतमबुद्ध, वर्धमान-महावीर, गोसाल मंखलीपुत्त प्रभृति का आविर्भाव एवं अंतिम तीनों द्वारा प्रचारित बौद्ध, जैन तथा आजीवक धर्मों का अभ्युदय हुआ था। वैदिक धर्माभिमानी आर्य लोगों ने विदेह, अंग तथा मगध के निवासियों की जो अवज्ञा की थी उसके प्रतिवाद तथा प्रतिक्रिया से ही बौद्ध जैन तथा आजीवक धर्म उत्पन्न हुए या नहीं इस विषय का विवेचन ऐतिहासिक लोग ही कर सकते हैं । इस स्थान पर मेरे लिये इस आलोचना में प्रवृत्त होना निष्प्रयोजनीय है । जो हो ; मैंने जो समस्त *विदेशी विद्वानों में प्रो० लासेन ने लिखा है (s. B. E. Vol. 22 Introduction P. 18, 19) कि बुद्ध और महावीर एक ही व्यक्ति हैं क्यों कि जैन और बुद्ध परम्परा की मान्यताओं में अनेक विध समानता है । थोड़े वर्षों के बाद अधिक साधनों की उपलब्धि तथा अध्ययन के बल पर प्रो०

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