Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 62
________________ होने का इतिहास खूब ही उत्कंठित करने वाला है। किन किन कारणों इस देश में एक खास तरह के लोग रहते हैं जिन को "सराक" कहते हैं इनकी संख्या बहुत है। ये लोग मूल में जैन थे। तथा इन्हीं की कहावतों और इनके पड़ौसी भूमिजों की कहावतों से मालूम होता है कि :-ये एक जाति की संतान हैं जो भूमिजों के आने के समय से भी पहिले यहां बहुत प्राचीन काल से बसी हुई थी। इन के बड़ों ने पार, छर्रा, बोरा और भूमिजों आदि जातियों के पहले अनेक स्थानों पर मन्दिर बनवाये थे यह अब भी सदा से ही एक शांतमयी जाति है जो भूमिजों के साथ बहुत मेलजोल से रहती है । कर्नल डैलटन के मतानुसार ये जैन हैं और ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ये लोग यहां आबाद हैं । यह शब्द “सराक" निःसंदेह श्रावक से निकला है जिस का अर्थ संस्कृत में सुनने वाला है। जैनों में यह शब्द गृहस्थों के लिये आता है जो लौकिक व्यापार करते हैं और जो यति या साधु से भिन्न हैं (मि० गेट सेंसर्स रिपोर्ट) मानभूम के सराक यद्यपि वे अब हिन्दू हैं परन्तु वे अपने प्राचीन काल में जैन होने की बात को जानते हैं । वे पक्के शाकाहारी हैं मात्र इतना ही नहीं परन्तु काटने के शब्द को भी व्यवहार में नहीं लाते । (मि. सरसली) सराक लोग हिंसा से घृणा करते हैं, दिन को खाना अच्छा समझते हैं, सूर्योदय बिना भोजन नहीं करते, गूलर आदि कीड़े वाले फलों को नहीं खाते, श्री पार्श्वनाथ को पूजते हैं और उनको अपना कुलदेवता मानते हैं (एव कूपलैंड) इन के गृहस्थाचार्य रात को भात भी नहीं खाते, उन में एक कहावत प्रसिद्ध है :-"डोह 'डूमर (गूलर)' पोढ़ो, छाती ए चार नहीं खाये श्रावक जाति ।" इस जाति का अभिमान है कि इस में से कोई भी व्यक्ति किसी फौजदारी अपराध में दंडित नहीं हुअा। और अब भी संभव है कि इनको यही अभिमान है कि इस बृटिश राज्य में भी किसी को अब तक कोई फौजदारी अपराध का ,

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